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________________ ९६ ] सिद्धान्तसार दीपक जिस प्रकार हैमवत क्षेत्र और महाहिमवन् पर्वत को जीवा, चूलिका धनुष और पाच भुजा के प्रमाण का कथन किया है हैरण्यवत क्षेत्र और रुक्मी पर्वत के जीवा धनुष आदि का प्रमाण भी उसी प्रकार जानना चाहिये । निषधपर्वत का जघन्य आयाम अर्थात् हरिक्षेत्र की उत्तरी जोवा का प्रमाण ७३९०१२५ योजन है। इसी पर्वत का उत्कृष्ट पायाम अर्थात् जीवा का अथवा विदेह क्षेत्र की दक्षिण जीवा का प्रमाण ६४१५६६० योजन और चूलिका का प्रमाण १०१२७३. योजन है । निषध के कनिष्ट धनुः पृष्ट अर्थात् हरिक्षेत्र के ज्येष्ठ धनुष का प्रमाण ८४०१६२. योजन और ज्येष्ठ धनुः पृष्ठ अर्थात् निषधके धनुष का प्रमाण १२४३४६ ,, योजन है. उषा निषध पी पागा ना प्रमाण १९५१६ योजन है। निषध पर्वत का जो जघन्य पायाम एवं लघुधनुः पृष्ठ के प्रमाण का कथन किया है वही हरि क्षेत्र को उत्तरी जीवा एव ज्येष्ठ धनुष का प्रमाण होता है । हरिक्षेत्र और निषध पर्वत के प्रायाम, चूलिका, धनुष और पाव भाग आदि के प्रमाण का जो निदर्शन किया है वही प्रमाण रम्य कक्षेत्र और नील पर्वत की जीवा आदि का जानना चाहिये । विदेह को मध्य जीवा का प्रमाण एक लाख योजन, धनुः पृष्ठ का प्रमाण १५८११३१६ योजन है । विदेह को अर्धचूलिका का प्रमास २९२१६६ योजन और पाश्वभुजा का प्रमाण १६८५३३६ योजन है। ( यह सब बर्णन हरिव स पुराण के अनुसार किया है ) दक्षिण भरत से उत्तर ऐरावत क्षेत्र पर्यन्त सम्पूर्ण क्षेत्र एवं कुलाचलों का ब्यास, बाण, जीवा, चूलिका, धनुष और पार्श्वभुजा का एकत्रित प्रमाण ( योजनों में ) निम्न प्रकार है: [ तालिका अगले पृष्ठ पर देखिये ]
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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