SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थाधिकार [६३ छोटे धनुपृष्ठ व बड़े धनुपृष्ठ का जो अन्तर है, उसका अर्धप्रमाण पाश्र्व भुजा कहलाती है, ऐसा जानना चाहिए ॥४०॥ प्रमोषां विस्तरख्याख्यानमुच्यते:-विजयाधस्याभ्यन्तरबारणः योजनानां अष्टत्रिंशदधिकशतवयं तिस्रः कलाः । विजयार्धस्य बाहयोबाणः अष्टाशोत्यधिकशतद्वयं कलास्तिस्रश्न । समस्तभरतस्य बाए: षड्विंशत्यधिकपञ्चशतानिषट्कलाश्च । हिमवतोबाणः योजनानां अष्टसात्यधिकपञ्चदशशतानि कला अष्टादश । हमवतक्षेत्रस्य बाणः त्रिसहस्ररशतचतुरशीति योजनानि कलाश्चतस्त्रः। महाहिमवतोबाण: सप्तसहस्राष्टात-चतुर्नवति योजनानि कलाश्चतुर्दश ! हरिवर्षस्य वाण: षोडश सहस्रत्रिशतपञ्चदश योजनानि कलाः पञ्चदश । निषधपर्वतस्य वायाः प्रयस्त्रिशत्सहस्र कशत-सप्तपञ्चाशधोजनानि कला: सप्तदश । विदेहस्य मध्यस्थवाणः योजनानां पञ्चाशत्सहस्राणि । इति यथा दक्षिण विग्भागे क्षेत्रकुलाद्रोणां वाणो व्याख्यातः, तथोत्तरदिग्भागेऽपि ज्ञातव्य।। बाग, जीवा, धनुः और चूलिका आदि का सविस्तार वर्णन करते हुये सर्व प्रथम बाण का प्रमाण कहते हैं: विजयाध पर्वत के प्रभ्यन्सर वारण का प्रमाण २३८१ योजन है । , ,,, बाह्य , , , २८८ ॥ है । सम्पूर्ण भरतक्षेत्र के , का , ५२६१ , ,1 हिमवन् पर्वत " " ॥ ॥ १५७८ , । हैमवत क्षेत्र ., ३६८४ । । महाहिमवन् पर्वत , 1, , ७८६४ , । हरिवर्ष क्षेत्र , . , . १६३१५ । । निषध पर्वत विदेहक्षेत्र के मध्य , , , , ५०००० योजन है । जैसे जम्बुद्वीप के दक्षिणभागस्थ क्षेत्र और कुलाचलों के वाण का प्रमाण कहा है, उसी प्रकार उत्तर भाग में स्थित ऐरावत आदि क्षेत्र एवं नील आदि पर्वतों के बारण का प्रमाण भी जानना चाहिये । भरत रावतविजयायोरभ्यन्तरजीवा नबसहस्र-सप्तशताष्टचत्वारिंशद्योजनानि, सविशेषा द्वादशकलाः । बाह्यजीवादशसहस्र-सप्तशत विशति योजनानि किञ्चिदूनाद्वादशकलाः । चूलिका षडशीत्यधिक चतुःशल योजनानि !
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy