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________________ ६२] निहारानी कुलाचलों की ऊँचाई का वर्णन: शतक योजनोत्तुङ्गो हिमयान निशातप्रमः । महादिहिमवांस्तुङ्गो योजनश्चचतुःशतः ॥३४।। निषधस्तत्समो नौलो रुक्मी शतद्वयोन्नतः । योजनानां शतोच्छ्रायः शिखरीति जिनोदितः ॥३५।। अर्थः-हिमवान् पर्वत की ऊँचाई १०० योजन (४००००० मील), महाहिमवान् की २०० योजन (८००००० मील), निषध पर्वत की ४०० योजन (१६००००० मील) नील पर्वत की ४०० योजन, रुक्मी की २०० योजन और शिखरिन् पर्वत की ऊँचाई १०० योजन प्रमाण है ।।३४-३५।। अब जीवा, अनुपृष्ठ, चूलिका और पार्श्वभुजा के लक्षण कहते हैं:-- नबस्यग्रशतांशेन वृत्तद्वीपस्य विस्तृतिः । वाणस्तद् द्विगुणाः शेषास्तेषां जीवा धनुः प्रथम् ॥३६॥ पूर्वापराधिपर्यन्तं दक्षिणोत्तरभागयोः।। क्षेत्राद्रीणां य आयामः सा जीवा कथ्यते बुधः ॥३७।। यच्चापाकारवर्षाद्रीणां पृष्ठभागमञ्जसा । पृष्ठं शरासनस्येव तद् धनुः पृष्ठमुच्यते ॥३८॥ लव्या गुश्चि जीवा या पायामस्य यदन्तरम् । वर्षाद्रीणां च तस्या यत् सोक्ता चूलिकागमे ॥३६॥ लघुज्येष्ठधनुः पृष्ठयोःर्घस्य यदन्तरम् । क्षेत्राद्रीणां च तस्याधं यत् सा पार्श्वभुजा मता ॥४०॥ अर्थ:--गोलाकार जम्बूद्वीप के विस्तार (१ ला० योजन) का एक सौ नब्बे वा भाग भरतक्षेत्र का वारण है । उससे आगे के पर्वतों तथा क्षेत्रों का वाण उससे दुगुणा दुगुणा होता गया है । उनके जीवा एवं धनुपृष्ठ पृथक् पृथक हैं ।।३६।। क्षेत्र या पर्वत के दक्षिण की ओर या उत्तर की पोर जो समुद्र पर्यन्त क्षेत्र या पर्वत की पूर्व-पश्चिम लम्बाई है, वह दक्षिण जीवा व उत्तर जीवा है, ऐसा ज्ञानियों ने कहा है ॥३७३ क्षेत्र या पर्वत का जो चाप के प्राकार पृष्ठभाग है, तथा जो पृष्ठ तौर के प्रासन के समान है, वह धनुः पृष्ठ कहलाता है ।।३८।। क्षेत्र व पर्वतों को लघु जीवा की लम्बाई मौर गुरु (बड़ी) जीवा की लम्बाई का जो अन्तर है, उसका प्राधा चुलिका है ॥३९॥ क्षेत्र एवं पर्वतों के
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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