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________________ क्रमांक २ ३ ४ ५. ६ ७ चतुर्थाधिकार समस्त क्षेत्र एवं कुलाचलों के विस्तार का प्रमाण : नाम भरत हैमवत हरि विदेह रम्यक हैरण्यवत ऐरावत क्षेत्रों का विस्तार योजनों में मीलों में क्रमांक १ ३३६८४१| १३४७३६८४२४४ कुलाचलों के व्यास आदि का वर्णन: ५२६५ २१०५२६३६ हिमवन् १०५२६३ २१०१ -४२१०५२३३ २ महाहिमवन ४२१० ८४२११४३३६८४२१०१४ | ३ निषध १६८४२ नील १६८४२ हे रुक्मी ४२१०३० शिखरी १०५२१ ४२१६३३६८४२१०५ २१०५ ८४२१०५२६ ५२६१६ | २१०५२६३ नाम ६ कुलाचलों का विस्तार योजनों में [ et मीलों में ४२१०५२६६ है १६८४२१०५६ ६७३६८४२११४ ६७३६८४२१६४ १६८४२१०५ को ४२१०५२६६ एते कुलायो रम्याः क्षेत्ररन्तरिता हि षट् । पूर्वापराधिसंलग्ना वनवेद्याद्यलंकृताः ॥३२॥ मूलोपरिसमव्यासाः शाश्वतास्तुङ्गमूर्तयः । नानामणिविचित्रोभयपार्थ्याः श्रीजिनंर्मताः ॥३३॥ अर्थः- क्षेत्रों के द्वारा अन्तरित ये रमणीक छह कुलाचल पर्वत पूर्व पश्चिम समुद्र को स्पर्श करने वाले, वनवेदी यादि से अलंकृत, मूल से अग्रभाग पर्यन्त समव्यास वाले, शाश्वत, दीवाल के सरग ऊँचे और नाना प्रकार की मरियों से खचित दोनों पार्श्व भागों से युक्त हैं ऐसा श्री जिनेन्द्र देव पू कहा है ।।३२-३३|| विशेषार्थ:-- इन कुलाचलों के दोनों पार्श्वभाग नाना प्रकार की मणियों से खचित हैं और वं पश्चिम समुद्रों को स्पर्श करने वाले हैं। इनमें जम्बूद्वीपस्थ कुलाचलों के दोनों पार्श्वभाग लवण समुद्र को स्पर्श करते हैं । घातकी खण्डस्य कुलाचल लबरगोदधि और कालोदधि को स्पर्श करते हैं, तथा पुष्करार्धद्वीपस्थ कुलाचल कालोदधि और मानुषोत्तर पर्वत को स्पर्श करते हैं ।
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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