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योजन में स्थित मुनि समाज के (सम्वत्सर पञ्चकावसाने) पाँच वर्षों की समाप्ति पर होने वाले (युगप्रतिक्रमणम्) युग प्रतिक्रमण को करते हुए (आस्ते) थे (अन्यदा) किसी समय (भगवान्) अर्हदबलि (युगप्रतिक्रमणं कुर्वन) युग प्रतिक्रमण करते हुए (मुनिवृन्द) मुनि समूह को (अपृच्छत्) पूछा कि (सर्वे यतयः) सम्पूर्ण मुनि (आगताः) आ गये? ___अर्थ-उन भगवान् अहबलि ने सौ योजन मात्र में बसने वाले मुनियों को पाँच वर्षों की समाप्ति पर होने वाले युगप्रतिक्रमण को जब करा रहे थे तब मुनिसमूह से पूछा कि क्या सभी मुनि आ गये?
तेऽप्यूचुर्भगवन्यमात्मात्मीयेन सकलसंघेन । समामागतास्तततस्तद्वचः समाकर्ण्य सोऽपि गणी ॥८६ ॥ काले कलावमुष्मिनितः प्रभृत्यत्र जैनधर्मोऽयम् । गणपक्षपातभेदैः स्थास्यति नोदासभायेन ॥१०॥ इति सञ्चिन्त्य गुहायाः समागता ये यतीश्वरास्तेषु । कांश्चिन्नन्द्यभिधानान् कांश्चिट्ठीरा हयानकरोत् ।।११॥
अन्वयार्थ- (तेऽिप) वे मुनिराज भी (ऊचुः) बोले (भगवन्) हे भगवान् (वयं) हम लोग (आत्मीयेन) अपने सकल (संघेन) सम्पूर्ण संघ के साथ (समं आगताः) साथ-साथ आ गये हैं (तद्वचः समाकर्य) उन वचनों को सुनकर (सोऽपिगणी) वह अर्हद् बलि आचार्य भी (अमुस्मिन् कलो काले) इस कलि काल में (अत्र) इस भरत खण्ड आर्य देश में (अयं जैन धर्मः) यह जैन धर्म (इतः प्रभृति) अब से लेकर (गणपक्षपातैः) गण संघ आदि के पक्षपात से (स्थास्यति) स्थिर रहेगा (न उदासभावेन) उदास भाव से तटस्थ भाव से नहीं (इति सञ्चित्य) ऐसा सोचकर (तेषुः) उन मुनियों में (ये यतीश्वराः) जो मुनि (गुहायाः समागताः) गुफा से आये थे (कांश्चित् नाभिधानात्) किन्हीं को 'नन्दी' इस नाम से (कांश्चिद् वीरोयान्) किन्हीं को 'वीर' संज्ञा से युक्त (अकरोत्) किया ।
अर्थ- वे मुनिराज भी आचार्य महाराज के पूछने पर बोले कि हे भगवान् हम अपने सम्पूर्ण संघ के साथ आ गये हैं उनके इन वचनों को सुनकर उन आचार्य ने भी यह सोचकर कि इस कलिकाल में इस भरत खण्ड के आर्य खण्ड में जैन धर्म अब से लेकर गण (संघ) आदि के पक्षपात को लेकर चलेगा, निरपेक्ष (तटस्थ
श्रुतावतार