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उनसे दश लाख करोड़ सागर समय बीतने पर अभिनन्दन नाथ हए। उनसे नौ लाख करोड़ सागर समय बीतने पर सुमतिनाथ पाँचवें तीर्थंकर
उनसे नब्बे हजार करोड़ सागर समय बीतने पर पदमप्रभ छठे तीर्थंकर हुए । उनसे नौ हजार करोड़ सागर समय बीतने पर सातवें सुपार्श्व नाथ तीर्थंकर
सुपार्श्व नाथ तीर्थंकर से नौ सौ करोड़ सागर समय बीतने पर चन्द्रप्रभ आठवें तीर्थकर हुए।
चन्द्रप्रभ से नब्बे करोड़ सागर समय बीतने पर पुष्पदन्त नौवें तीर्थंकर हुए।
सम्भवनाथ तीर्थकर से पुष्पदन्त नदम तीर्थकर तक यह श्रुतज्ञान अनवरत रहा।
अथ पुष्पदन्ततीर्थे नववारिधिकोटिगणनया कलिते । पल्योपमतुर्याशे शेषे तत् श्रुतमयाप विच्छेदम् ॥२५ ॥
अन्वयार्थ- (अथ) तदनन्तर (नववारिधि कोटिगणनया कलिते) नौ करोड़ सागर प्रमाण गणना से युक्त, पुष्पदन्त भगवान् के (तीर्थे) तीर्थ में (पल्योपम तुर्याशे शेषे) पल्योपम के चतुर्थांश के शेष रहने पर (तत्) वह (श्रुतं) भगवान् की वाणी रूप श्रुतज्ञान (विच्छेद) समाप्ति को (अवाय) प्राप्त हो गया।
अर्थ-तत्पश्चात् नौ करोड़ सागर प्रमाण गणना से युक्त पुष्पदन्त भगवान् के तीर्थ में पल्योपम के चतुर्थ भाग शेष रहने पर वह भगवान् की दिव्यध्वनि द्वारा बताया गया श्रुतज्ञान विच्छेद को प्राप्त हो गया
पल्यचतुर्भागमिते काले तीर्थे ततः समुत्पन्नः । शीतलजिनः स पुनराविष्कृतयाँस्तत् श्रुतविशेषम् ॥२६॥
अन्ययार्थ-(पल्यचतुर्भागमिते) पल्य के चौथाई भाग प्रमाण (काले) काल में (तीर्थे) तीर्थ के विच्छेद होने पर (ततः) तदनन्तर (पुनः) फिर (शीतलजिनः) शीतलनाथ दश तीर्थंकर (समुत्पन्नः) उत्पत्र हुए (सः) उन्होंने (तत्) वह पूर्व तीर्थंकरों द्वारा प्रणीत (श्रुत विशेषम्) श्रुतज्ञान (पुनः) फिर से (आविष्कृतवान्) प्रकट किया।
| श्रुतावतार