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शुद्ध भावना भाय के, अष्ट कर्म कर नास । कुछ क्षण में ज्ञानी हुग. प्रश्न चह मुनि खास ॥ ८५% ASEAR -श्रीपाल रास चित्त चाहो तो आपणुं, लीजे चंपा गज रे । छडे प्रयाणे चालिये, सबल सैन्य लइ साज रे ॥३॥ क्री
बाहर से लौट कर मयणासुन्दरी ने राजप्रसाद में देखा कि आज प्राणनाथ का न चल विचल हो रहा है, उसने उनके मनोरंजन के अनेक उपाय किये, किन्तु फिर भी उसे सफलता न मिली। उधर से प्रजापाल भी यहाँ आ पहुँचे। किन्तु महाराज श्रीपाल को पता नहीं कि उनके पीछे कौन खड़े हैं। वे तो चुपचाप तकिये के सहारे गाल पर हाथ लगा, अपने विचारों में मग्न थे।
प्रजापाल)- कहिये सार ! आज तो आप उल्दी पधार गए ? महाराज श्रीपाल ने खड़े होकर अभिवादन किया, उन्हें अपने पास आसन पर ऊंचा बटाया। महाराज श्रीपाल-कोई बात नहीं ! चलता है ! प्रजापाल - नहीं, नहीं ! आप संकोच न करें । कहीं किसी सेवक, सेविका ने आपकी आज्ञा का अनावर तो नहीं किया ? मालूम होता है, कि आज आपके मन में कुछ खेद है। संभव है, आप अपनी बपौती चंपानगरी की सत्ता हस्तगत करने की कुछ सोचते हों ? इसमें आप तनिक मात्र भी संकल्प-विकल्प न करें। यदि आप की यही इच्छा है, तो आप आज ही प्रयाण कर दें, हम प्राणों की बाजी लगा कर भी आप का साथ देने को तैयार हैं। आप कोई चिंता न करें । हमारे पास लड़ाई के विपुल साधन हैं ।
कुंवर कहे सुसरा तणे, बले न लीजे राज रे । आप पराकम जिहां नहीं, ते आवे कुण काज रे ॥४॥ क्री.
तेह भणी अमे चालशु, जोशुं देश-विदेश रे । भुज बले लखमी लही, करशुं सकल विशेष रे ||५|| की०
महाराज श्रीपाल-राजेन्द्र . धन्यवाद । यह आपकी बड़ी उदारता है। जीवन उन्हीं का सार्थक है. जो कि अपने भुजबल से आगे बढ़े। मैं निःसंदेह एक दिन चंपानगरी सत्ता हस्तगत करके रहूँगा । मुझे अपनी मातृभूमि और बपौती का गौरव है । किन्तु इस समय “देशाटनं पंडित मित्रता च" मुझे पहले कुछ सत्पुरुषों का सत्संग और देश-विदेश में परिभ्रमण कर अनुभव करना आवश्यक है । मैं अपने पुरुषार्थ से ही धनोपार्जन कर सारे काम करूंगा। आप कष्ट न करें ।