________________
सुख नहीं हैं बालों में, सुख नहीं है बनिन : कुल वो है को पक्ति में है, और सुम्य है. शान्ति में । ७२
-%
A RKARKARI श्रीपाल रास मेरे पास आ, हमें धीर बंधाया और संरक्षण का अभिवचन दे, बैठने को एक टट्ट देने की उदारता की। उस की बातचीत से ज्ञात हुआ कि वे सातसौ पथिक कर्मवश इधरउधर मारे-मारे भटक रहे हैं।
ए हवे आव्या शोधया रे, वैरी ना असार । कोई स्त्री दीठी इहां रे, पूछे वारोवार । देखो. ॥२०॥
कोई इहां आव्यो नथी रे, झूट म झंखो आल ।
वचन न मानो अमतणो रे, नयणे जुओ निहाल । देखो० ॥२१॥ जो जोशो तो लागशे रे, अंगे गेग असाध | नाम बीना बापड़ा रे, बलगे रखे विराध । देखो० ॥२२॥
कमलप्रभा - चापाजी ! मैं वस्त्र से अपने शरीर और प्यारे मुन्ने को ढक कर चुपचाप आगे निकल गई। पीछे से घोड़ों के टापों की आवाज सुन मैंने जैसे ही घूमकर देखा तो यमराज की सेना के समान बहुत से स-शस्त्र सैनिक हमारी बोज करते हुए चले आ रहे थे. दूरसे उन्हें देख मेरे प्राण मूक गये। वे हमारे साथियों को लालपीली आँखें कर तलवार और डंडों के संकेत से डाट-डपट दे संतप्त कर रहे थे। किन्तु एक वृद्ध महोदय ने बड़ी बुद्धिमानी और नम्रता से उन मेनिको का शान्ति से समाधान कर आपना पिण्ड छुड़ाया। वे रोग का नाम सुनते ही दुर्गन्ध से घबड़ा कर विचारे अपने प्राण लेकर भाग गये । कुष्टी संगत थी थयो रे, सुन ने उबर रोग। माडी मन चिंता घणी रे, कठिन करम ना भोग । देखो० ॥२३॥
पुत्र भलावी तेहने रे, माता चाली विदेश ।
वैद्य औषध जोवा भणी रे, सहेती घणा किलेश । देखो ॥४॥ ज्ञानी ने वचने करी रे, सयल फलो मुज आश । तेहिज हुँ कमलप्रभा रे, आ बेठी तुम पास | देखो० ॥२५॥
रास रूडो श्रीपाल नो रे. तेहनी दशमी दाल । विनय कहे पुण्ये करी रे, दुःख थाये विसगल । देखो० ॥२६॥