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________________ २ २ - २ श्रीपाल रास उठो! जागो ! और उत्तम वस्तुओं को प्राप्त कर। २ मंगलाचरण (हिन्दी अनुवाद कर्ता की ओर से) सिद्ध-चक्र महायंत्र है. सेवे चौसठ इन्द्र । लेखक 'विनय, वाचक प्रवर,' यशोविजय. कवीन्द्र ।। वंदन 'सूरि-राजेन्द्र, को, 'सूरीश्वर यतीन्द्र' । अनुवाद यह श्रीपाल का, सफल करो जिनेन्द्र ।। हे वीणापाणि भगवति! तू प्रार्थना स्वीकार कर । अब सफल कर इस कार्य को मु-बुद्धि बल प्रदान कर || अनुवाद हिन्दी में लिखू श्रीपाल के इस गम पर । मुनि न्याय का अनुरोध है आनन्द ले पाठक प्रवर ।। प्रस्तावना गुरु गौतम राजगृही आव्या प्रभु आदेश । श्री मुख श्रेणिक प्रमुख ने इणि परे दे उपदेश । उपगारी अरिहंत प्रभु सिद्ध भजो भगवंत । आचारिज उवज्झाय तिम साधु सकल गुणवंत ॥ दरिसण दुर्लभ ज्ञान गुण चारित्र तप सुविचार । सिद्धचक्र ए सेवतां पामो जे भव पार ॥ इह भव पर भव एह थी सुख संपद सुविशाल । रोग सोग रोख टले जिम नस्पति श्रीपाल ॥ पूछे श्रणिक राय प्रभु ते कुण पुण्य पवित्र । इन्द्र भूति तव उपदिशे श्री श्रीपाल चरित्र ॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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