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किस को अं! नहीं किया, इम मोह ने सच मुच ? किसे नचाया नाच नहीं, कामदेव जग वीच? हिन्दी अनुवाद सहित REAR
- ** 55२ ६१ गुरु वचने हुँ आवी आज, तुम दीठे मुज सरिया काज । त्रणे जण हवे रहे सुख वास. लील करे साइमी आवाम ॥१९॥
सिद्धचक नो उत्तम गम, भणतां गुणतां पुगे आस ।
ढाल आठमी इणी परे सुणी विनय कहे चित्त घरजो गुणी ॥२०॥
कमलप्रभा--श्रीपाल ! मैं पूज्य गुरुदेव की शुभासीस ले यहां आई, तुम्हें स्वस्थ __ और बहू का विनय-सेवा-भक्ति देख मेरा हृदय ठर गया। बैठा ! सुखी रहो। युग
युग सु-धर्म की आगधना कर जन्म सफल करो ! वे तीनों अपने स्वधर्मी बन्धुओं के निवासस्थान पर आनन्द से रहने लगे ।
__ श्रीमान् उपाध्याय विनयविजयजी कहते हैं कि श्री सिद्धचक्र महिमा दर्शक श्रीपाल रास की यह आठवीं ढाल पाठक मन लगाकर पढ़ेंगे और श्रोतागण उसे श्रवण __करेंगे तो उनकी मनोकामनाएं अवश्य सफल होगी ।
दोहा एक दिन जिन पूजा करी, मधुर स्वरे एक चित्त । चैत्यवंदन कुंवर करे, सासु बहु सुर्णत ॥५॥
मयणानी माता घणु, दुह वाणी नृप साथ ।
जब मयणा मत्सर धरी. दीधी उम्बर हाथ ॥२॥ पुण्यपाल नामे नृपति, निज वांधव आवास । गेसाई आवी रही, मुके मुख निसास ॥३॥
जिनवाणी हियड़े धरी, विमारो दुःख दर्द । __ आवी देव जुहाखा, तिण दिन तिहां आणंद ॥२॥ माए मयणा ओलखी, अनुसारे निज बाल । आगल नर दीठो अवर, यौवन रूप रसाल ॥५॥
कुल खपण ए कंवरी, कां दीधी किस्तार । जेणे कुष्टी वर परिहरी अवर कियो भरतार ॥६॥