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सा ट्रेप मय आत्मा, धारत है बहु चेष। पर में निज को मान कर धारत है वह वेष ।। हिन्दी अनुवाद सहित * RIERRENERA २ ५९ कर मानव को यहां अनेक संकटों से, और भवान्तर में दुर्गति के दारुण दुःखों से बचा लेते हैं। आत्मस्वरूप, भेद विज्ञान समझने की चाची गुरुकृपा से ही हाथ लगती है ।
राणा के सभी साथी सम्यक्त्व ले मुक्त कण्ठ से श्री जैनधर्म की प्रशंसा करते हुए सहर्ष आनन्द से वापस अपने घर लौट गए ।
एक दिन जिनवर प्रणमी पाय, पाछा वलता दीठी माय ।
हर्ष धरीने चरणे नमे, मयणा मयणा पण आवी तिण समे ।।९।। सासु जाणी पाए पड़े, विनय करता गिरु आई चड़े। सासु बहू ने दे आशिष, अचरिज देखी धूणे शीष । १०॥
कहे कुंवर माताजी सुणो, ए पसाय सहु तुम बहू तणो ।
गयो रोग ने वाध्यो रंग, वली लह्यो जिन धर्म प्रसंग ॥११॥ सुगुण बहू निर्मल निजनंद, देखी माय अधिक आणंद । यूनम परे बहू ते जश लीध, कल कला पूरण पिउ कीध ॥१२॥
श्रीपाल कुंबर और मयणासुन्दरी एक दिन जिन मंदिर से दर्शन कर वापस घर लौट रहे थे। मार्ग में सहसा कमलप्रभा सामने आ मिली । “ मां" के दर्शन कर श्रीपालकुंवर चरयों में झुक पड़ । मयणासुन्दरी ने भी बड़े विनय के साथ सास के चरणस्पर्श कर नीची निगाह कर ली। मां वर्षों के बाद अपने लाल का स्वस्थ और चांद सा मुखडा देख फूली न समाई । कमलप्रभा नववधू का धर्म स्नेह श्रीपाल की कंचन सी काया देख बड़े आश्चर्य में पड़ गई। वह अपने सिर पर हाथ धर चोलीबाह रे ! वाह कर्मचन्द - भाग्य तेरी गत तू ही जाने । मैं व्यर्थ ही बेटे के मोह में आतध्यान कर रोती चिलखती थी किन्तु वास्तव में आज गुरुदेव के वचन अक्षरशः खरे उतरे । धन्य है सद्गुरुदेव : आपकी में क्या प्रशंसा करूँ?
___ वर्ण की ओलो करने वाले क्रमशः चावल, गेहूं, चने मूग, उड़द और शेष पार दिन तक चांवल प्रायः एक ही द्रव्य या उसी एक द्रव्य के बिना नमक के बने पदार्थ ही काम में लें। यदि एक से जधिक द्रव्य काम में ले तो बिना नमक के हो पदार्थ लें ।
इस समय आयंबिल में सेंदा नमक, काली मिर्च, सूठ आदि काम में लेते हैं किन्तु यह उचित नहीं। यदि आपको सेंदानमक आदि लेना है तो आप आयंबिल का पच्छकखाण न लेकर निवी का ही पवाखाण करें ।