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________________ अन्य को संगत दुःखद है, इस में संशय नाय । कमल को संगत किये प्राण भ्रमर के जाय ॥ हिन्दी अनुवाद सहित RRRRRRRRRRRAK२४२ ५. साहम्मी ना सगपण समुं, अवर न सगपण कोय । भक्ति करे साहम्मी तणी समकित निर्मल होय ।।३।। पधगवे आदर करी, साहम्मी निज आवास । भक्ति करे नव नव परे, आणी मन उल्लास ॥१॥ तिहां सघलो विधि मांचवे, पामी गुरु उपदेश । सिद्धचक्र पूजा करे, आंबिल इम सुविशेष ||५|| आचार्य मुनिचंद्रमूरिजी ने एक सिद्धचक्र यंत्र लिख कर मयणासुन्दरी से कहा, लो वेटी ! इस यंत्र के प्रभाव से तुम्हारा इस लोक और पर लोक में कल्याण हो । तुम्हारी मनोकामनाएं सफल हों, इस यंत्र की अवश्य आराधना करना । पश्चात् आचार्य देव ने श्रावकों से कहा । महानुभावो ! यह आत्मा अनादि काल से अपने कुटम्य परिवार का पोषण करता चला आ रहा है, अनिच्छा से भी उन का पोपण तो करना ही पड़ता है। किन्तु स्वधर्मी व्रतधारी बन्धुओं की सेवा का लाभ पुण्योदय से हाथ लगता है। श्रद्धालु स्यागी, तपस्वी, गुणीजन, असहाय श्रावक-श्राविकाओं की सेवा-भक्ति करने से सम्यक्त्व की निर्मलता होती है। ये पति पति होनहार और गुणवान हैं। आप इनकी भक्ति का अवश्य लाभ लें । श्री-संघने उन का हृदय से स्वागत कर भोजन आदि की सुव्यवस्था की । वे भी पनि पत्नी गुरुदेव की आज्ञानुसार ज्ञान, ध्यान, श्री सिद्धचक्र पूजन आयंबिलादि तय में मग्न हो आनंद से रहने लगे। ढाल आठवीं ( चौपाई छंद) आसो सुदि सातम सुविचार, ओली मांडी स्त्री भरतार । अष्ट प्रकारे पूजा करी, आंबिल कीधा मन संवरी ॥१॥ पहले आंबिल मन अनुकूल, रोगनणो तिहां दाझ मूल । अंतर दाह सयल उपशम्यो, यंत्र नमण महिमा मन रम्यो ॥२॥ मिश्या दृष्टि सहस्रेषु, वरमेको हि अणुवती । अणुदती सहस्रेषु वरमेको महाप्रती ॥ १ ॥ महारती सहस्रेषु, वरमेको हि तात्त्विकः । तत्तात्विक समं पात्र, न भूतं न भविष्यति ॥ २ ॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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