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आनम आतम रटन से, ही प ही भव पार | भोजन की कथनी किंगे, मिटे भूच क्या यार ! २८ .२R
R २२२ श्रीपान र म प्रजापाल आवेश में आकर मयणा ! यह क्या ? छोटे मुंह बड़ी बात ! नू बंटी नहीं शत्रु है ! तू राजसभा में अपने पिता का अपमान कर उन्हें सीख देने लगी कि " पिताजी ! म करो झूठ गुमान" अरे नादान बेसमझ क्यों तू व्यर्थ ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ा मारती है | यही तेरी शिक्षा का सार है ! वाह रे वाह !
तुझे पैदा किया हमनें, तुझे हमने खिलाई है। तुझे पाली है हमनें, अरु तुझे विद्या पढ़ाई है। तुझे अपनी समझ के ही, माननोया हमने बनाई है। तेरी शक्ति कतनी? शक्ति को हमने बढ़ाई है ।। सभी तो मेरा ही है, अपना तू किसको बसाएगी । हमारे किस उपकार का बदला मला तू चुकाएगी ।
नादान ! तू नित्य रत्नजड़ित झूलों में झूलनी है, भिष्टान्नादि बढ़िया भोजन, मुन्दर भांति भांति के वस्त्रालंकार पहनती हैं । ये सेवक-सेविकाएं समय समय पर नंग सेवा में उपस्थित रहनी हैं यह किसकी कृपा है ? फिर भी तू मेरी बातों को ठुकराना चाहती है ?
तत्त्व विचारो तातजी ! रे मत आणों मन रोष। कर्मे तुम कुल अवतरी रे, मैं किहाँ जोया जोष । पि०६।। मल हावो मोटे मने रे, नव नव करो निवेद ।
ते सवि कर्म पसाउले रे, ए अवधारो मेद ॥पि०॥७॥ ___ मयणासुन्दरी- पिताजी ! मेरा आपसे अनुरोध है कि आप एक बार शान्त-चित्त से बट कुछ विचार करें। यदि आप मेरी बात को समझकर कुछ मनन करेंगे नो निःमन्दह आप कहेंगे कि मयणा ने आपके यहां जन्म लिया है वह न किसी ज्योतिषी के कहन से, न आपकी इच्छा से:किन्तु मैंने अपने पूर्वत शुभा-शुभ कर्मों के मंयोग से ही, यह सब कुछ पाया है। अब रही पालन-पोषण, खान-पान, सुन्दर वस्त्राभूपण और शाही ठाट पाट की बात | पिताधी! दरअसल बात यह है कि मानव अन्तराय कर्म के क्षय होने से ही बढ़िया खान-पान, स्वर्गीय मुख का आनन्द ले सकते हैं. नहीं नो कई मनुष्य ऐसे भी हैं कि उनके पास विपुल सम्पति, मेवा मिष्टान्न उत्तम भोजन की