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________________ आला न सबसे अधिक विघ्नकारक है । आलस्य से तन और मन दोनों ही दुर्बल होते हैं। हिन्दी अनुवाद दिन NARRRRRRRRR२३०९ वीर्यरक्षा के अचूक उपाय:-निश्चित समय पर मल-मूत्र का अवश्य त्याग कर दो, इस के वेग को रोकना वीर्यरक्षा के लिये बड़ा धानक है ! पेट को साफ और हलका रखो। प्रातः काल उठकर प्राणायाम-व्यायाम करो, गहरे श्वास लो, दस पंदरह मिनिट के नियमित व्यायाम से आपके शरीर की क्रांति निखर उठेगी। आपकी स्मरणशक्ति और नेत्रों की सुरक्षा के लिये प्रतिदिन शीर्षासन करना न भूलो । भोजन सदा प्रसन्न मन और अनासक्त भाव से करो । भोजन करते समय कदापि चिन्ता और क्रोध न करी । प्रत्येक वस्तु को अल्प और दांतों से खूब चबा चबा कर खायो । भोजन सूर्य स्वर में और जल-पान चंद्र स्वर में करना अमृत के समान है। भोजन करते समय मौन रहो । सदा भोजन में घी, तेल में तले चटपटे तेज मसालेदार पदार्थ अधिक काम में न लो । पक्ष में एक बार उपवास करना, भोजन के बाद कुछ दूर टह . कर आधा घंटे अपनी नई करवट लेटना शक्ति स्फूर्ति और स्वास्थ्यप्राप्ति का एक रामबाण उपाय है । दिन में नींद न लो। अपने दांतों को बंद कर धीरे धीरे चूस चूस कर जल-पान करो। इस से वर्षों तक आपके दांत न हिलेंगे और नेत्रों की ज्योति मंद न होगी। बुरे साथियों से दूर रहो । *अश्लील साहित्य न पढ़ो। +सिनेमा चलचित्रों से बचो । सायकल का अधिक उपयोग न करो। चाय, शकर और मिची ये तीनों विष हैं, इनको अपने निकट न आने दो। ___* अश्लील साहित्यः-अश्लील साहित्य, जिसमें कामवासनाओं को जमाने की सामग्री का अधिक वर्णन होता है, विद्यार्थियों के लिए किसी समय भी पढ़ना अच्छा नहीं है। गहस्थी की देखा-देखी विद्यार्थी भो रेल के सफर में, रविवार को छुट्टियों में समय बिताने के लिये अश्लील कहानी, उपन्यास, नाटक आदि पढ़ने लगते हैं । एसे साहित्य पढ़ने से मन में बुरी सावनाएं उत्पन्न होती हैं । इससे विद्यार्थी एवं प्रत्येक मानव को वोय-विकार का अनेक व्याधियां आ घेरती हैं। इससे बचने के लिये भूल कर भी अश्लील-गदे साहित्य न पढ़ना चाहिए । + सिनेमाः-आपको सिनेमाओं से इसलिए बचना है कि इनके जरिये बहुत दिनोंसे जनता को जो दी जा रही है, वह जनता के स्वास्थ्य और सामायिक आवश्यकता, दोनों के विपरीत है। मनोरंजन के नाम पर स्त्रियों के लज्जाजनक दृश्य दिखाकर, जनता के मन में जिन इच्छाओं को जन्म दिया जाता है अथवा बढ़ाया जाता है, वह उन्हें लम्पट दुराचारी बनाकर उनके स्वास्थ्य का सर्वथा नाश करता है । सिनेमा मनोविनोद नहीं, चरित्र के पतन और ब्रह्मचर्य के विनाश का खुला द्वार है। छात्रावस्थामें सिनेमर देखना महान घातक है। आज मानव ९० प्रतिशत वीर्य-विकार के रोगसे पीड़ित हैं इसका कारण सिनेमा है। सिनेमा के धार्मिक चित्रों में भी प्रायः शगार रस का पुट रहता है अत: सिनेमा के बुरे प्रभावों से बचने के लिए उनका न देखना ही श्रेयस्कर है। x सायकला-सायकल मानव के स्वास्थ्य और दीर्घायु की इतिश्री-सहार की एक दुपारी
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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