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आनद हर आदमी के अंदर है। और वह पूर्णता और सत्य की ताश से मिलता है। हिन्दी अनुवाद सहित ।
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तो सभी ने एक स्वर से कहा है कि वीर्य की एक ही बिन्दु का दुरुपयोग मृत्यु है तो बिन्दु-बिन्दु का संरक्षण एक अति उत्कृष्ट तप, संजीवन सुधा हैं । प्रत्येक मानव सुख, स्वास्थ्य और दीर्घ जीवन चाहता है। इनकी प्राप्ति ब्रह्मचर्य से होती है । यदि स्वास्थ्य को भवन का रूप दें, तो ब्रह्मचर्य को उसकी नींव मानना पड़ेगा । जैसे नींव को ठोस किये बिना कोई बड़ा भवन खड़ा नहीं रह सकता है, वैसे ही ब्रह्मचर्य के बिना स्वास्थ्य भी नहीं रह सकता । आप सुखी बनना चाहते हैं ? हाँ, तो ब्रह्मचर्य का पालन करें । आत्मवल आत्मतेज की प्राप्ति का एक ही साधन ब्रह्मचर्य है । जिसने अपने बाल्यकाल में ब्रह्मचर्य का पालन कर लिया उसके लिये इस संसार में कोई कार्य असंभव नहीं है । सफलता का मूल मंत्र है : ब्रह्मचर्य ही सर्वोचम तप हैं
क्या आप चाहते हैं कि आप से जनता प्रेम करे ? संसार का प्रत्येक मानव आपकी और आकर्षित हो ? आपकी प्रत्येक बात शिरोधार्य कर मान दें ! हां तो आपको ब्रह्मचर्य की सचल पतवार हाथ में लेनी होगी, फिर देखो कितनी सुगमता और वेग से आपकी जीवन- नौका प्रत्येक प्रकार की कठिनाई रूपी भंवरों को पार करती ई आगे बढ़ती चली जाती है ।
क्या आप चाहते हैं कि आपके मुंह पर लाल-गुलाबी छटा हो ? आपके नेत्रों में अनूठी ज्योति हो ? चाल में अनोखापन हो ? आपकी छाती में उठान, हृदय भें दृढ़ता हो ? आपके शरीर का प्रत्येक अंग सुगठित - बलवान हो ? आपके शत्रु सदा आपसे भय मानें, सफलता आपका स्वागत करे, आपकी बोली मनमोहिनी हो ? हां, तो आज आप किसी भी अवस्था में क्यों न हों, ब्रह्मचर्य का पालन प्रारंभ कर दें । फिर देखियेगा कि आप संसार में कैसे चमकते हैं । सारा संसार भरे की भांति आपके चारों ओर मंडराने लगेगा | आपके जीवन में एक नवीन प्रकाश की ज्योति खिल उठेगी ।
* ब्रह्मचर्य में दो शब्द हैं:- एक ब्रह्म और दूसरा वयं । ब्रह्म-गुरुकुल में, चर्म रहना । इसी अपेक्षा से साधु-साध्वी आजन्म सद्गुरु की शरण में रह औदारिक, वैऋिछ और शारीरिक काम भांग का त्याग करते हैं और ब्रह्म-वोयें की, वर्ष-रक्षा करते हुए आत्मविकास की प्रगति कर एक दिन अवश्य हो परम पद (मोक्ष) प्राप्त कर लेते हैं । ब्रह्म-आत्मा में चर्य - रमण करना ही तो ब्रह्मचर्य है |
tara की पांच भावना:- १ स्त्री, पशु, नपुंसकों के निवासस्थान का त्याग | २ रागपूर्वक स्त्री-कथा का स्याग । ३ स्त्रियों के अंग-उपागों को घूर घूर के देखने का त्याग । ४ पूर्व में किये हुए संभोगादि विषयों के स्मरण का त्याग । ५ अति पौष्टिक उत्तेजक भोजन का त्याग | ब्रह्मचयं के अठारह हजार भेद हैं ।