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________________ सबसे ऊंचा आदेश यह है कि हम बोतरोग बनें | सबसे ऊंचा आदर्श राग-द्वेष से मुक्त हो जाना है । ३०२ श्रीपाल रास लिये जितना आवश्यक हैं उतना ही निर्मलता के लिये भी आर्जव से निर्मल बुद्धि वस्तु के सत्य स्वरूप को ग्ररण करती है । * ४ शोच धर्म - लोभ से दूर रहीं। लोभ एक का रोग है । ( इस से मानव के सभी सद्गुण नष्ट हो जाते हैं। कीर्ति, प्रतिष्ठा धरा धरती ) धरोहरधन और धन्धे के लोभ में हजारों स्त्री-पुरुषों को असमय में अपने अनमोल प्राणों से हाथ धोना पड़ा । अपने चेले, चेली औरे पद की लोलुपता से साधु साध्वियों को मी आर्तध्यान होना संभव है । वे मानव धन्य है जो कि छाया से बच कर अपने आत्म स्वभाव में रह कर सदा अनासक्त भाव से जीवन व्यतीत करते हैं । ५] सत्य धर्मः - अविसंवादन योग वस्तु का यथार्थ स्वरूप और मन, वचन, काया की कपटरहित प्रवृत्ति होना । तथा नाम ऋषभदेव, स्थापना - ऋषभदेव की प्रतिमा, चित्र, द्रव्य- कृष्णजी, रावण, श्रेणिक आदिभावी जिन, भाव-महाविदेह क्षेत्र में विचरते तीर्थंकर इन चार प्रकार के निक्षेपों से जैन दर्शन ने सत्य धर्म को प्रधान माना है । " जं सच्चं तं खु भगवं भगव" अर्थात् सत्य ही भगवान हैं। + ६ संयम - धर्म - मनोवृत्तियों पर, हृदय में उत्पन्न होने वाली इच्छाओं पर और इन्द्रियों पर संयम रखना संयम धर्म हैं। स्पष्ट है कि मन और इन्द्रियों को वश और इच्छाओं का दमन किए बिना न आप को संतोष हो सकता है और न समाज, राष्ट्र, या विश्व में ही शांति स्थापित हो सकती है। पाश्चात्य विचारधारा से प्रेरित कई भारतीय जन भी आज लालसाओं की तृप्ति में अपने जीवन की सफलता मान बैठे हैं। इच्छाओं का रोधन-दमन करना वे निर्बलता का चिह्न मानते हैं किन्तु इस भ्रान्त धारणा का परिणाम आज प्रत्यक्ष हमारे सामने है । मानव जाति की आवश्यताएं दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही हैं, और मनुष्य उन की * शौच धर्मः- :- साघन और अपने शरीर में भी आसक्ति न रखना ऐसी निर्लोभता को शौच धर्म कहते है । इस के भी दो भेद हैं द्रव्य और भाव । द्रव्यशौच निर्दोष आहार पानी ग्रहण करना | भावशौच - कषायादि मानसिक विकारोंका त्याग करना । + संयम धर्मः - संयम के सत्रह भेद हैं:- पंच महाव्रत, चार कषाय, पांच इन्द्रियों का निग्रह और मन, वचन, काया की विरति । इसी प्रकार पांच स्थावर और चार स- इनके विषय में नव संयम प्रेक्ष्य संयम, उपेक्ष संयम, अपहृत्य संयम, प्रभृज्य संयम, काय संयम, वाक् संयम, मनः संयम और उपकरण संयम, यह सतरह प्रकार का संयम है । संयम को विशुद्ध आराधना ही मानव मव की सार्थकता है ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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