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अहंकार को पद पद पर तोड़ते हुए चलो। यही जीवन को सबसे बड़ी विजय है ।। हिन्दी अनुवाद सहित **ॐS H AR२७५ गोलियों के निकट एक मस्त हाथी डट कर शत्रुओं का सामना करता है। गुरुदेव ! आपने आत्मविकास के घातक, राहु-केतु (राग-द्वेष) को अपने धर्य वज्र से चूर-चूर कर, भवसागर पार करने को अपना चरण आगे बढ़ाया ।
संसार से मुक्त होने के एक नहीं अनेक मार्ग हैं। इस राजमार्ग को खोजने मैं अच्छे अच्छे दार्शनिक, संत-महात्माओं की शुद्धि चकरा जाती है। किन्तु आपने अपने योगचल से क्षीर-नीर (दूध और पानी) के समान अनेक विकट महा कठिन निष्फल मार्गों का परित्याग कर उनमें से एका अति महत्वपूर्ण सरल मार्ग " अनासक्त भाव
और समता" को ही अपनाया है । वास्तव में जीवन मुक्त हो, अनुपम आनंद पाने का यह एक रामबाण उपाय है । धन्य है, धन्य है । गुरुदेव ! आप इस परम पवित्र राजमार्ग पर बड़े वेग से आगे बढ़ते चले जा रहे हैं। आप की वाणी, व्यवहार और आचरण में अभेद सा सम्बन्ध है। सचमुच आप बाहर हैं वही अन्दर भी परम पवित्र उज्वल हैं ।
तुमे अनुभव जोगी निजगुणी भोगी विश्वनो तारूजी । तुमे धर्म सन्यासो शुद्ध प्रकाशी तत्त्वना वारूजी ।। तुमे आतम दरसी उपशम वरसी विश्वनो तारूजी । तीजो गुण वाडी थाये ते जाडी पुण्य शुं वारूजी ॥१०| अप्रमत प्रमत न विविध कहोजे विश्वनो तारूनी । जाणंग गुण ठाणंग एकज भाव ते तें ग्रह्यो वारूजी ।। तुमे अगम अगोचर निश्चय संवर, विश्वनी तारूजी ।
फरस्युं नवि तरस्युं चित्त तुम केलं स्वप्नमां वारूंजी ॥११॥ समय तक आसन लगा कर भजन करते समय यदि कोई विघ्न आपड़े तो अपने आसन से चलायमान न होना निषद्या परिषह हैं। ११ कोमल या कठोर ऊंची नीची जैसो भी समय पर जगह या पाट-पाटले मिले उस पर समभाव से शयन करना शय्या परिषह हैं । १२ कोई व्यक्ति कितने ही कट अप्रिय शब्द कहे उसे हंसते हंसते सत्कार वन सहन कर लेना आक्रोष परिषह है। १३ कोई व्यक्ति ताड़न तर्जन करे उसे भी एक प्रकार की सेवा मान संयम से चलायमान न होना वध परिषह है। १४ दोनता और अभिमान न कर सिर्फ संयम निर्वाह के लिये गोचरी (मधुकरो) करना याचना परिषह है। १५ आहार लेने जाने पर यदि आहार न मिले तो उसे तपोबद्धि मानकर संतोष कर लेना अलाभ परिषह है। १६ रोगादि कष्ट माने