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________________ विषय गर्त में पड़ कर चेतन ! नाना दुःख उठावे । ऐसे मन उन्मत्त मढ़ को, सद्गुरु नित्य जगावे !! हिन्दी अनुवाद सहित २६७ परम कर्तव्य है कि हम लोग भी अपने देश के लिए शीघ्र निर्भय हो मैदान में कूद पड़ें। आप लोग जरा भी न धवराएं । आगे बढ़ें । पीछे हटने का नाम न लें। राजा ने अपनी भुजा ठोक कर कहा । भूमि पर तारे गिरें आकाश से यदि टूट कर । चन्द्रमा से आग निकले चांदनी में फूट कर ॥ सूर्य से यदि शीत की किरणें, निकल आए तो क्या । सिंहनी सुत भूल कर, यदि घास भी खाए तो क्या ।। किन्तु फिर भी “अजित" रण से लौट सकता नहीं । आपके सु-योग से ही, मेरी विजय होगी सहो ।। वीर योद्धाओं ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ कहा-जय हो! जय हो !! महाराजाधिराज सम्राट् अजितसेन की जय हो ! हम लोग प्राणपण से आपके साथ हैं। मानभेदी सहा हाती. डोज नाहे वीर वाद्यों के स्वर से वीर योद्धाओं की भुजाएं फड़क उठीं। अजितसेन ने सैनिकों को धन्यवाद देते हुए कहा पर्वाह न मरने की, न जीने को हम करें । कूद जाएं आग में, विजय श्रीपाल पर करें । अजितसेन बंद वेग से अपनी सेना ले श्रीपालकुंवर की सेना पर टूट पड़े । अब की बार तो कुंवर के छक्के छूट गये । फिर भी वे लोग जप सिद्धचक्र !! जय सिद्धचक्र !! जय घोष के साथ प्राण पण से लड़ते रहे । क्षण में रणभूमि मरघट बन गई । इधर कुंवर के सैनिकों के पैर उखड़ते देख सातसौ राणा अपनी सेना लेकर उनकी सहायतार्थ वहाँ आ पहुंचे। उन्हें देखते ही राजा अजितसेन के थके माद योद्धाओं के देवता कूच कर गए। फिर तो वे लोग चुपके चुपके एक के बाद एक खिसकने लगे । अन्त में गिनती के सैनिकों के बल पर अकेले राजा अजितसेन कर ही क्या सकते थे? राणा की सेना ने उन्हें अतिशीघ्र चारों और से घेर लिया । एक राणा ने आगे बढ़ कर राजा अजितसेन से कहा : । जय विजय का डंका:-राजेन्द्र ! क्या अन्याय की जड़ कभी पनप सकती है ? कदापि नहीं । मेरा आपसे अनुरोध है कि आप शीघ्र ही अपनी हठधर्मी को तिलांजली दे, पराई धरोहर लौटा दें। आप इसमें जरा भी "मीन, मेष " न करें । अकारण व्यर्थ ही नर
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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