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________________ ऐसे मूढ मति नरको संगत, उचित नहीं है करनो । ऐसे का जो साथ करे बह, सड़ता है वैतरणी ॥ हिन्दी अनुवाद सहित * *** * * 62 २६५ परम कर्तव्य तो क्रोधिन यमराज की लाल लाल आंखों का अनुकरण कर रहे थे । क्षण में समरभूमि नर मुंडों से ढ़क गई, चारों और रक्त की नदियां बहने लगीं। भाट चारणों की स्वरलहरी सुन मतवाले सैनिकों ने अंधाधुंध मारकाट मचा दी, कई पगले सनकी योद्धाओं ने तो अपने हाथ से ही अपना सिर काट कर, वे केवल धड़ से ही बड़े वेग से सिपाहियों का सफाया करते चले जा रहे थे। समरभूमि में चारों ओर लुड़कते गुड़कते नरमुंडों को देख भूत-प्रेतों के मुंह से लार टपकने लगीं । वे खिलखिला कर हंस रहे थे। तलवारों के झटकों से मुझे अरीखे उड़ते वीरों के मुंडों को आकाश में उछलते देख पूर्यदेव के प्राण मुट्ठी में आ गये । कहीं राह मुझे आ कर अस न ले। इसी भय से तो वे आकाशगंगा में कमलों की ओट लुक-छिप कर अपने प्राण बचा रहे हैं। समरभूमि में चारों और गेंद के समान हाथी-घोडों के कटे सिर लुड़कने-गुड़कते देख भूत-प्रेतों के मुंह से लार टपकने लगीं। वे हंस हंस कर शव के रक्तपान का आस्वादन ले रहे थे । अनायास योद्धाओ की तलवारों पर लगे बहमुल्य गजमुक्ता ब्रह्माजी के रथ में जुते राजहंसों के मन को ललचा रहे थे। श्रीपालकुंवर के कुशल तीरंदाज सैनिक शत्रओं के आगत बाणों को सहज ही छिन्नभिन्न कर देते थे, यह दृदय देख अजितसेन के सैनिकों के पैर उखड़ने लगे। उन्हें भागते देख सैनिक ने कहा- अजी क्षत्रिय होकर रणभूमि से मुंह मोड़ते हो? क्षत्रि के बालक होकर, माता का दुध लजाते हैं । घिक धिक् ऐसे लोगों को, जो ग्ण से जान चुराते हैं । सेनापति के जादुई शब्द सुन शु, सेना के तन में आग लग गई । उनकी भुजाएं फड़क उठीं, क्रोध से उनका मुंह लाल हो गया । प्रत्येक सैनिक की आँखों में भेरु खेल । रहे थे । उनके एक उच्चाधिकारी योद्धा के स्वर ने तो जलती आग में मानों घी होम दिया। लौट चलो वीगें इन्हें हम धुंआधार दिखा दें। " छठी का दूध” अब तो इन्हें, खूब याद करा दें। दिग्पाल चीख मारकर, थर्राये लोक पाल । बीन बीन के इनको मार दो, भूखा है महा काल ॥ फिर तो चारों ओर बड़े वेग से बर्थी भाले और तलवारें चमकने लगी, वीर सैनिक आँख मुंद कर एक दूसरे का सफाया करते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे थे । घमासान युद्ध में कम
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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