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मन के खेत में बबूल न बोकर फूलों के बोज बोओ 1
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ॐ ॐ এ और
हिन्दी अनुवाद सहित
सौभाग्य सुन्दरी और रूप सुन्दरी दोनों में जिस प्रकार प्रेमभाव था उसी प्रकार उनमें सैद्धान्तिक मछेद भी सौमनसे प्रभावित थी, और रूपसुन्दरी श्री वीतराग देव प्रणीत जैनधर्म की अनन्य उपासिका थी |
परिवार के सभी सदस्य एक ही सिद्धांत के अनुगामी या मानने वाले हों. ऐसी कोई बात नहीं । " भिन्न रुचिर्हि लोकाः " की उक्त्यानुसार मनुष्यों की धारणाएं, विचार शक्तियां एवं अभिरुचियां भिन्न भिन्न होती हैं। उसी के अनुकूल वे आचरण करते हैं । सम्प्रदाय, धर्म तो साधन मात्र हैं। धर्म बाजार की वस्तु नहीं जो कि ठोक पीट कर अथवा पैसे आदि के बल से किसी के सिर पर लादा जा सके ।
हो सकता है, किन्तु धर्म के सम्बन्ध में शाश्वतोऽयं धर्मः " धर्म तो नित्य है,
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सम्प्रदाय की बातों पर विवाद और भेद कभी मतभेद न हुआ और न हो सकता है । वह अनित्य जीवन से कहीं अधिक मूल्यवान है । अंत करण शुद्धित्वं धर्मः " अंतःकरण की शुद्धि ही धर्म है, और वही भवसागर से पार लगाने वाला है। साधन की भिन्नता भले हो किन्तु अपना विशुद्ध लक्ष पापों से मुक्ति कर्म क्षय करने के उपाय को भूल धर्म की ओट में आपस में लड मरना, महानू भूल हैं ।
सुर परे सुख संसारना भोगवतां भूपाल ललना । पुत्री एके की पामिए राणी दोय रसाल ललना ||६|| देश० एक अनुपम सुर-लता वाधे वधते रूप ललना । बीजी बीज तणी परे इन्द्र कला अभि रूप ललना || ७|| देश० सोहग्ग देवी सुता तणो नाम उवे नरनाह ललना | सुर सुन्दरी सोहामणो आणी अधिक उच्छाह ललना || ८|| देश० रूप सुन्दरी राणी तणी पुत्री पावन अंग ललना । नाम तास नरपति वे मयणा सुन्दरी मनरंग ललना ॥ ९॥ देश० वेद विचक्षण विप्र ने सोंपे सोहाग्ग देवी ललना | सयल कला गुण सीखवा सुरसुन्दरी ने हेवी ललना ॥१०॥ देश०