SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मन के खेत में जैसे बीज बोओगे, भविष्य में बही पाओगे । ट श्रीपाल र स उस समय उज्जैन में महाराज प्रजापाल राज्य करते थे। इनकी दो रानियां थीं, एक का नाम सौभाग्य सुन्दरी व दूसरी का नाम रूप सुन्दरी था । प्रजापाल के शासनकाल में दरिद्रता दुःख सन्ताप कहीं भी सुनाई नहीं देता था । चोरी, दुष्कर्म, अत्याचार, जुआ आदि दुर्गुणों का कहीं नाम निशान भी न था । एकता और शान्ति सर्वत्र छा रही थी। ईर्षा द्वेष और बुरी कल्पनाएं स्वप्न में भी किसी के मन में कमी उत्पन्न न होती थी। मात्र अजपा के न्याय-नीति तथा वीरता का डंका चारों ओर बज रहा था, जिससे उनके शत्रु लोग भी उनकी धाक मान कर सदा भय कम्पित रहते थे । महाराज प्रजापाल ने ऐसा प्रबन्ध कर रखा था कि धर्म वृद्धि के लिए व्रत, अनुष्ठान, देवपूजा आदि एक न एक सत्कार्य प्रतिदिन हुआ ही करते थे । सारी प्रजा उन पर पिता समान श्रद्धा भक्ति रखती थी। वे भी पुत्रवत् उनका पालन कर यथा नाम, तथा गुण, का परिचय दे चुके थे । उज्जैन सुख, सन्तोष, आनन्द, उदारता तथा धन धान्य, कला कौशल से इतना परिपूर्ण था कि उसकी तुलना में इन्द्र की स्वर्गपुरी भी हार खाकर स्वर्ग को लौट गई । कुबेर की अलका सामना तक न कर सकी। लंका के पास प्रचुर स्वर्ण था किन्तु समता नहीं । तमोगुणी प्राय दूसरों को फला फूला नहीं देख सकते हैं । लंका भी ईर्षानि से इतनी सन्तप्त हो गई थी कि उसे शान्ति पाने को समुद्र में पापात करना पडा । ++ सौभाग्यसुन्दरी और रूपसुन्दरी दोनों सौत थी, फिर भी उनमें प्रेम का स्रोत बहता था । वे क्रोध, लोभ, ईर्षा, अहंकार तथा छल कपट से सदा दूर ही रहती थी । आपस में एक दूसरी के सुख-दुःख की साथिन थी। उनके मिलन सार स्वभाव से समस्त परिवार एवं परिचारक भृत्य वर्ग प्रभावित था | महाराज प्रजापाल के सम्बन्धी जन और राजमहल के सम्पर्क में आने वाले स्त्री पुरुष कहा करते थे कि 'देखो ! सहोदर बहिन बहिन की भी आपस में एक दूसरी की नहीं पटती । जरा जरा सी समस्याओं की दिवार बीच में खड़ी कर बुरी तरह से झगड़ती हैं, एक दूसरी के पति देव व बाल बच्चों को कोसती हैं, अपशब्दों का बौछार से कुलीनता को धन्वा लगाती हैं, यह निश्चित विनाश की जड़ हैं । धन्य है इन सुकुलीनी राजमाताओं को. सचमुच इनका यह अभेद व्यवहार एवं शांत स्वभाव अभ्युदय का सूचक हैं | ―
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy