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________________ रयनमंजूषाकी प्राप्ति है। इसलिये में राजाको किस प्रकार उत्तर दूं ताकि इनको विपास हो। - पुरुषको चाहिए कि जो कुछ भी कहें, उसके पहिले ; उसकी सत्यताको सिद्धिके लिए साक्षी तुहले अथवा चुप हो रहे । इस प्रकार वे सोच ही रहे थे कि पूर्व पुण्यके योगसे दो अवधिज्ञानी मुनिराज विहार करते हुए कहींसे वहां मा गये। सो ये दोनों उन मुनिको देखकर परम आनन्दित हो उठ खड़े हुए और बड़ो विनयसे स्तुति करने लगे। अहा ! धन्म भाग्य हम सार, भयो दिगम्बर गुरु निहार । धनि तुम धर्म धुरंधर धीर, महस बीस दो परिषह धीर ॥ धन्य मोहतम हरन दिनन्द, भव्य कुमुद विकसावन चन्द । कर्म बली जगमें परधान, ताह हतनको आप कृपाण ॥ सुर हूँ सकहि न तुम गुण गाय, तो हमसे किम वरणे जाय । हे प्रभु ! हमपर होहु दयाल, धर्मबोध दीजिये कृपाल ।। इस प्रकार गुरुकी स्तुति करके वे दोनों निज २ स्थान पर बैठे। श्री गुरुने उनको 'धर्मवृद्धि' देकर इस तरह उपदेश दिया - "ऐ जिज्ञासुओं ! सर्व धर्म और सुख का मूल सम्यक्त्व है। इसके बिना कुछ क्रिया कर्म जप तप संयम सब ही निमल हैं। इसलिये सबसे पहिले जोबोको यह सम्यमत्व - ग्रहण करना चाहिये । वह सम्यक्त्व दो प्रकार है-एक निश्चय और दूसरा व्यवहार । निजस्वरूपातुभव स्वरूप निश्चय सम्यक्त्व है, और तत्व निश्चय सम्यक्त्व के लिये साधनरूप प्रधान कारण है। इसलिये कारण में कार्यका उपचार होनेसे इसे व्यवहार सम्यक्त्व कहते हैं। . . . . .
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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