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श्रोपाल परित्रा नमो तुम जिनवर देव, भव : F मिले तुम्हारो सेव । .. तुम जिन सर्व दुःख परन, पोलंका. तुम भविमन सनं ॥ .. तुम बिन जीव फिरे संसार, जोगो संकट सहे अपार ।
तुम बिन करम न छोड़े संग, तुप बिन उपजे मन भ्रमभंग ॥ तुम बिन भव प्रातापहि सहे, तुन विन जन्म बरा मृतु दहे ।
तुम बिन कोऊ न लेप उबाल, तुम बिन.कर्म मिटे न लगार || .. तुम बिन दुरिय दुःखको हरे, तुप बिन.कोन परम सुख करे। • तुम बिन का काटे यमर, तुम बिन को पुजवे .आनन्द ॥ तुम बिन उरज कुमति कुमात्र, तुम बिन कोई न और सहाव । तुम बिन हितू न दुना कोय, तुम चिन शुभ गति कबहुं न होय ।। तुम बिन मैं पापो जा श्रन्यो, तुम बिन कालबाद सब गयो । तुम बिन मैं दुःख पायो घों, वेदन शूल कहां ला भनों । तुम अबतक जिन लखो न कोय, दोनो आयु व्ययं सब खोय । तातें अर्ज करू सुनि लेव, कर्म अनादि काट मम देव । सेवकको ओर तनिक निहार, जन्म मरण दुःख कोजे क्षार ।।
राजा इस प्रकार प्रभु की वंदना करने के पश्चात् धीपालके निकट आया, और यथायोग्य सत्कारके पश्चात् । कुशलक्षेम ओर आगमन का कारण पूछने लगा- .. . - हे कुमार ! आपका देश कोन हैं ? किस कारण आपका यहां शुभागमन हुआ है ? इत्यादिक प्रपन बब राजाने किए तब श्रीपाल मनमें विचार करने लगे, कि यदि मैं अपने अपना वृत्तांत कहूंगा, तो राजाको खातिरो (निश्वय) होता कठिन है, क्योंकि इस समय अपने कथनको साक्षो करनेवाला कोई नहीं है, और बिना साक्षो, सच भो. झूठ हो जा सकता
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