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रसमजूषाकी प्राप्ति ।
आज ध वासर तिथि पार, आज धन्य मेरो अवतार । . आज धन्य लोचन म सार, तुम स्वामी देखे जु निहार 10 . मस्तक धन्य आज भो भयो, तुम्हरे चरण कमलको नयो । .. धन्य पवि मेरे भये मब, तुम तट आय पहुँचो जब 11 आज धन्य मेरे कर भये, स्वामी तुम पद परश न लये । . आज हि मुख पवित्र मुझ भयो, रसना धन्य नाम जिन लयो !! . आज हि मेरो सब दुख गयो, आज हि मो कलंक क्षय भयो ।। . मेरे पाय गये सब आज, आज हि सुघरो मेरो काज ।। अति ही मुदित भयो मम हियो, पणविध नमस्कार जब कियो। . धन्य आप देवनके देव, श्रीपालको निजपदं देव ।। .
इस प्रकार स्तुति करके फिर सामायिक, बन्दन, आलो. चना, प्रत्या ख्यान, कायोत्सगादि षट् आवश्यक कर स्वाध्याय करने लगे । और वे द्वारपाल जो वहां पहरेपर थे, ऐसे विचित्र शक्तिधर पुरुषको देखकर पाश्रर्यवंत हो. कितनेक तो यहाँ हो रहे, और कितनेक राणाके पास गये । और सम्पूर्ण वृतांत राजासे कह सुनाया, कि महाराज ! एक बहुरूपवान, . मुणनिधान, सम्पूर्ण लक्षणोंका धारी महापुरुष जिनालयके द्वारपर आया और द्वार बन्द होने का कारण पूछा और "* नम: सिद्धम्" इस प्रकार उच्चारण कर निज करकमलों से सहजहीमें किवाड खोल दिये । इसलिये हम लोग बापकी आज्ञानुसार यह शुभ समाचार कहने आये हैं ।
राजा यह समाचार सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ, और समाचार देनेवालोंको बहुत कुछ पारितोषिक दिया । पश्चात . बड़े उत्साह व गाजेबाजे सहित सहस्रकूट चैत्यालय पहुँचा । . प्रथम ही श्री विमको नमस्कार कर स्तुति करने लगा--