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________________ ܐ ܘܢ श्रीपाल चरित्र | मंजू इस तरह श्रीपाल उन डाकुओं से रत्नोंके साथ जहांजा मट लेकर और उनको अपना आज्ञाकारी बनाकर धबल से ठके साथर रातदिन प्रयाण करते हुये बड़े आनंद और कुशलता से हंसदीपमें पहुँचे । यह दोष बत उपवनोंसे सुशोभित था । इसमें बड़ीर अठारह और छोटी रत्नोंकी अनेक खानें थीं। गजमोती बहुतायत से मिलते थे। सोने चांदी की भी बहुतसी खानें थीं । चन्दनके वनोंकी मन्द सुगन्ध पवन चित्तको बुरा लेती थी । केशरके बाग अतिशोभा दे रहे थे । कस्तूरीकी सुगन्ध भी मस्तकको तहस-नहस किये देती थी। तात्पर्य यह कि यह द्वीप अत्यन्त शोभायमान था । ऐसी वस्तु कवाचित् ही कोई होगी, जो वहां पैदा न होती हो । वहाँपरु रहनेवाले मनुष्य प्रायः सभी धन कण कंचनसे भरपूर थे । दुःखी दरिद्री दृष्टिगोचर नहीं होते थे । नगर में बड़े २ ऊचे महल बन रहे थे । इस द्वीपका राजा कनककेतु और रानी कंचनमाला थी । ये दंपति सुखपूर्वक काल व्यतीत करते और न्यापूर्वक प्रभाको पालते थे । राजाके दो पुत्र और रयनमंजूषा नामकी एक कन्या थी । सो जन वह कन्या यौवनवतो हुई, तब राजाको चिंता हुई, कि इस कन्याका वर कोन होगा ? यह पूछने के लिए राजा अपने दोनों पुत्रोंको लेकर उद्यानकी ओर मुनिराजकी तलाश में गया, तो एक जगह बनमें अचल मेश्वत् पानारूद्र परम दिगम्बर मुनिको देखा तोनों वहां जाकर भक्ति सहित नमस्कार कर तीन प्रदक्षिणा देकर बैठ गये और जब मुनिराजका ध्यान खुला तब वे विनयसहित पूछने लगे- 1 .
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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