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घोषाल परिन।
___“स्वामिन् हम लोग अविवेकी है। आपका पुरुषार्था बिना जाने हो हमने यह खोटा साहस किया था। आप दयालु, साहसी, न्यायी और महान् मुगया है। आपको बड़ाई कहांतक कर ? क्षमा करो प्रसन्न होओ और हम लोगोंका संकट दूर करो ।
इस प्रकार अनुपम विनययुक्त वचनोंसे श्रीपालजीको दया आ गई । इसलिये उन्होंने आशा दी-अच्छा तुम लोग अपने जहाजोंको शीन तयार करो।"
तुरन्त ही सब जहाज तैयार किये गये ! जहाजोंको तैयार देखकर श्रीपालजी ने पंचपरमेष्ठीका जाप करके सिद्धचक्रका आराधन किया । और ज्योंही उनको इकेला कि के सब जहाज चलने लगे । सब ओर जयजयकार शब्द होने लगा, खुशी मनाई जाने लगी, बाजे बजने लगे 1 सब लोग धोपालजीके साहस, रूप, बल व पुरुषार्थको प्रशंसा करने लगे, और सबने उदको अपने साथ ले जानेका विचार करके विनय की, कि यदि आप हम लोगों पर अनुग्रह कर साथ बलें, तो हमारी यह यात्रा सफल हो।
तब श्रीपालबोने कहा-" सेठजी, यदि आप अपनी कमाईका वशांश भाग . मुझे देना स्वीकार करें तो निःसंशय म आपके साथ चलू' सेठने यह बात स्वीकार की. बोर श्रीपालजोने धवल से ठके साथ प्रस्थान किया ।