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श्रवसेदफ़ा कपंत |
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अरे सेऊ ! तुझे यहां बच करनेसे मतलब है या कि अपने जजोंको बलानेसे ? "
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सेठने उत्तर दिया- हमको जहाज चलाना है यदि तू चला देवेगा, तो तूझे फिर कोई कष्ट देनेवाला नहीं है ।
तब श्रीपालजी बोले - " अरे मूर्ख ! तू लोभवश यहां नरबलि देने को तैयार हो गया, और दया धर्मको बिल्कुल जलांजलि दे दो ।" ठीक है" अर्थी दोषं न पश्यति " कहा भी है----
" लोभ बुरा संसार में सुध बुध सब हर लेय |
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"
बाप वखानो पापकों, शुभ्र पयानो देय ||
क्या तू यह जानता था कि मैं यहां तेरी
इच्छानुसार बलि हो जाऊंगा ? बता तो तेरे पास कितने शूरवीर हैं ?
देखूं कौन
कायरों !
और मेरे
उन सबको एक ही वार में चुरचूर कर डालूंगा | - साहस कर मेरे सामने वलि देने को आता है ? आओ ! शीघ्र ही आओ! देर मत करो! पुरुषार्थको देखो ! दुष्टों ! तुमको कुछ भी लज्जा भय व विवेक नहीं, जो केवल लोभके वश होकर अनर्थ करनेपर कमर बांध ली है। आओ, मैं देखता हूँ कि तुमने अपनी-अपनी Hate कितना दूध पिया है ? श्रीनरालजीने ऐमे साहस युक्त निर्भय वचन सुनकर धवलगेट और उसके सब आदमो मारे भयके कांपने लगे, और विनय सहित बोले
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