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________________ २] धीपाल परित्र । मार डालेगा, और नहीं जावेंगे तो हमको ढूटकर अधिक कष्ट देवेगा । इसलिये अब आपका शरण हैं, किसी तरह बचाइये। यह सुनकर श्रीपाल बोलें-भाइयो ! तुम भय मत करो। तुम कहो तो क्षणभर में करोडों वोरोंका मदन कर डालू और कहो तो वहां चलकर सेठका काम कर दूं। । तब वे आदमी स्तुति करके गद्गद् वचनों से बोले स्वामिन् ! यदि आप वहां पधारेंगे तो अतीव कृपा होगी, और हम लोगोंके प्राण भी बचेंगे व आपका यस बहत फैलेगा। आप घोरवीर हो, आपके प्रसादसे सब काम हो जाएगा यह सुनकर श्रोषालजो तुरन्त ही यह विचार को अन्द दाई ? यार मौतुक होता है ? चलकर परीक्षा करू? यह विचार करके उन लोगोंके साथ चलकर शीघ्र ही घवलसेठके पास पहुँचे । " वे लोग सेठसे हाथ जोड़कर बोले --सेठ ! आप जैसा पुरुष चाहते थे, सो यह ठीक वैसा ही लक्षणवन्त है। अब आपका कार्य निःसन्देह हो जाएगा । यह सुनकर उस को मांध सेटने बिना ही कुछ साँचे और बिना पूछे कि तुम जौन हो ? कहाँसे आये हो ? भोपालको बुलाकर उबटन कराकर स्नान करवाया. इतर फुलेल चन्दनादि लगाकर उत्तमर वस्त्राभूषण पहराये, और बड़े बाजे-गाजे सहित उस स्थान पर जहां जहाज अटक रहे थे ले गये।'' अब वहां शरबीहोंने इन के मस्तक पर चलाने के लिए खम उठाया, तब श्रीपालजी कौतुकसे मनमें यह विचारते हए कि अब इन सबका काल निकट आया है। इसलिये वे बोले -
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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