SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८० श्रीपाल चरित्र । धवलसेठका वर्णन श्रोपालजी विद्याधरसे जल-तारिणा और शत्रु-निवारिणी दो विद्याये नण कर वत्सनगरसे निकलकर और अनेक वन उपवनों की शोभा देखते हुए भृगुकच्छपुर (भडोंच) आये । वहा नगरको शोभा देखकर चित्त, प्रसन्न हुए । क्योंकि यह नगर समुद्रके तुल्य नर्मदा नदोके किनारे होने से अतिशय रमणीक भासता था । श्रोपाल घूमते२ उस नगर से किसी उपवनमें जा पहुँचे और वहां पास ही एक टेकड़ी पर श्री जिनमतनमें देख कर अति आनदित हुये और प्रभु की भक्ति वंदना कर अपना जन्म धन्य माना। इस प्रकार वे सिद्धचक्रका आराधन करते हुये कुछ काल तक उसी नगर में रहे। एक दिन कौशांबो नगरीका एक धनिक व्यापारी (धवल थेट्रि) व्यापार के निमित्त देशांतरको जाने के लिये पांचसो जहाज भरकर इसी नगरते समीप आया । पवनके योगसे उसके जहाज पासको खाडीमें जा पड़े । उस' सेठके साथ जितने आदमी थे उन सबने मिलकर अपनी शक्तिभर उपाय किया, . परन्तु वे जहाज न चला सके तब मेठको बड़ो चिन्ता हुई, . उसका शरीर शिथिल हो गया। निदान यह उदास होकर सोचते२ जब कुछ उपाय न बन - पड़ा तत्र लाचार हो नगरमें आया और किसी नगर निवासी निमित्त ज्ञानीसे अपना सब वृत्तांत कहकर जहाजके अटक . जानेका कारण पूछा । तब उस नगरवासीके निमित्त ज्ञानी - ज्योतिषी) ने कहा-सेर ! अपन: अशुभ कर्माको उदयसे ये जहाज अटक गये हैं। उनको जलदेवोंने कोल दिये हैं, सो या तो कोई महागुणवान्, लक्षणवंस, गमी र पुरुष, जो निर्भय हो. बह आकर इन जहाजोंको चलावेगा तो चलेंगे, अथवा यहापरा
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy