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________________ ७८ ) श्रीपाल चरित्र । परन्तु मेरा चंचल चित्त स्थिर नहीं रहता है, और इससे मंत्र भी सिद्ध नहीं होता है। हालि युगः . विक्षक, साधन करो। क्योंकि तुम सहनशील मालूम होते हो, सो कदाचित तुम्हें यह सिद्ध हो जाय । तब श्रोपालजी बोले भाई ! आपका कहना ठीक है, परन्तु सोना रत्नके साथ ही शोभा देता है, साधु क्षमासे शोभा देता है, जिनेन्द्रका स्तवन प्रात:काल ध्यानपूर्वक हो शोभा देता है, गजा सैन्य साहित ही सोहना है, श्रावक दयासे हो सोहता है, बालक खेलते हुए सोहता है, स्त्री शील होनेसे शोभा देती है, पंडित शास्त्र पढ़ते हुए ही शोभा देते हैं, दव्य दानसे शोभा पाता है. सरोवर कमलसे शोभता है, शूर युद्ध में शोभा देता है, हाथी सैन्यमें शोभता है, वृक्ष ठण्डी और सघन छायासे सोहता है, दूत कठिन वचनोंसे, कुल सुपुत्रसे घोर परोपकारसे, शरीर निर्भयतासे और तंत्र साधन स्थिर चित्तबालोंको हो शोभा देता है । इसलिए हे भाई ! मैं तो पथिक ( रास्तागीर } हूं मुझे स्थिरता कहां ? और मंत्रसिद्धि कसी ? " यह सुनकर बह वोर बोला- "हे कुमार ! आपका तेजस्वो मुखाविंद हो बता रहा है कि आप इसके योग्य हैं ! इसलिये मुझे अभय वचन दो । आप मेरे हो भाग्य से यहां आये हो । इसलिए अब आप अविलम्ब स्वस्थचित्त होकर इस मंत्रका आराधन करो। आपको श्रीगुरुको कृपासे यह विद्या सहज ही सिद्ध हो जाएगी । ऐमा कहकर बह मांत्र और विधि जसर उसके गुरुने बतलाया था जसने श्रीपालको बतला दी । तब श्रीवाल जी उसके बारम्बार कहने व आग्रह करनेगे मन वचन कायकी चचलताको छोड़कर शुद्धतापूर्वक निश्चय आसन लगाकर मंत्र जपने के लिये बैठ गये । जिससे एकाग्न चित्त होने के कारण उनको एक दिन में हो वह विद्या सिद्ध हो गई । तब
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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