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________________ ७६ ] श्रीपाल चरित्र | आदि किसका विश्वास नहीं करना, क्योंकि इतनो प्रीति गुड़ लपेटो छुरीकी तरह घातक है । नखखो, लक्खो, जटाधारी, मुड़े हुए भस्मधारी, भेषो व बनचर, कुब्जक बौना ( वापत ) काना केस (कंजा नेत्रवाला), छोटो गरदनवाला आदमी, डांकन, शकतो. दासी, कुट्टनी (दुर्ती) इनका भी विश्वास न करना । स्वस्त्री मित्राय अन्य स्त्रियां माता, बहिन बेटी के समान जानना अतिद्रव्य व ऐश्वर्य हो जानेपर भी अहंकार नहीं करना, निरन्तर पंचपरमेष्ठीका ध्यान हृदयमें रखना। भूलकर भी सिवाय जिनेंद्रदेव निग्रंथ गुरु और दयामय जिनवर कथित धर्म के अन्य कुदेव, कुधर्म व कुगुरको सेवा नहीं करना, और सिद्धनक व्रतका मन, वचन, कायसे पालन करते रहना ! ऐ पुत्र ! ऐ मेरे बचन दृढ़ कर पालना भूलना नहीं, ऐसा कहकर माताने आशीर्वाद दिया- धर्ममे नेह । न निज गेह || श्री बड़े अरु अतुल बल व नत्र रग दलको संग ले आवो धन्य महूरत धन बड़ी धन्य सुवासर सांय | जा दिन बहुरि कुरालसहित नेनन देख्नु तो ।। 71 } ऐसे शुभ वचन कहकर माता श्रीपाल के मस्तकार दही दूध और अक्षत डालती हुई, और मस्तक में मंगलाक कुमा तिलक करके ओफल दिना तथा निछावर को धायने भी आकर शुभ सूका दो सो पालने हर्षित होकर लो फिर सर्व स्वजनाने महरा दी। इसप्रकार उसी रात्रिके पिछले पहर में भोपालजाने सर्व उपस्थित जनोंको यथायोग्य धेयं देकर पंचक उच्चारण करते हुए, हर्षित हो, उत्साह सहित प्रयाण किया और सब स्वजन श्रीपालको विदाकर निज स्थानको पधारे। 3015 "
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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