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________________ ५७२ :] श्रीपाल चरित्र | निर्मम्यगुरु और अहिंसा धर्म हो तारनेवाले हैं। विशेष भरत यह और हैं कि, - " LP नारि जाति अति ही चपल, कीजो नहीं विश्वास । जेठो मा तरुणो बहिन, लघु सुता गिन तास ॥ " अर्थात् बडोको मरता बराबरवालीको बहिन और छोटो स्त्रियोको बेटी के समान समझियेगा। परदेशमें नाना प्रकार के होंगी, भूतं पो रहते हैं, इसलिए सोच विचारकर हो कार्य कीजियेगा । स्वामिन् ! में अज्ञान हूं, ढोठ होकर आपके सन्मुख यह वचन कहती हूं, नहीं तो भला मेरी क्या शक्ति जो आपको समझा सक्क? क्षमा कीजिये। एक बात यह और कह देती हूं कि यदि अपनी प्रतिज्ञावर बारह वर्ष पूर्ण होते ही आप न आए तो मैं दूसरे ही दिन प्रातःकाल जिनेश्वरी दीक्षा लेकर इस संसार के जालको तोड बविनाशो सुख के लिए इस पराधीन पर्याय टूटने के उपाय में लग जाऊंगी । अर्थात् जिनदीक्षा- प्राधिकार ग्रहण कर लू बी । तत्र श्रीपालीने कहा- "प्रिये ! बार कहने से क्या ? 'जो मेरा वचन है, उसे मैं अवश्य हो पालन करूंगा, इसके लिए सिद्धको साक्षी देता हूँ " ऐसा कहकर ज्यों ही श्रीपाला चलने लगे, त्योंही वह पुनः मोहवश स्वामीका पल्ला ( चद्दर खुंट ) पकडकर व्याकुल हो कहने लगी । सेना ! मैं तो जानती थी कि आप अबतक केवल विनाद को कर रहे हैं, परन्तु आप तो अब हंसीको सच्ची करने लगे । क्या आप सचमुच ही चले जायेंगे ? भला यह अवजा किस प्रकार कालक्षेप करेगो ? कृपा करो, दासोको अभय वचन दो, मैं आपके दर्शनको प्यासी हूं। आपके बिना मुझे यह सब
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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