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________________ ६८ ] श्रीपाल चरित्र | पति आज्ञा अनुसार जो, चले धन्य वह नारि । अरु पति विमुखा जे त्रियां, जैसे तीक्ष्ण कुठारि ॥ अपनी प्रिया के ऐसे वचन सुनकर श्रीपाल बोले- चन्द्र ने " आपने कहा सो ठीक है, परन्तु क्षत्रि कभी किसीके सामने हाथ नीचा ( ) कहा है करपर कर निशिदिन करें करतल कर न करे | जा दिन करतल कर करें। ता दिन मरण गिनेय ॥ इसलिए प्रथम तो मांगना ही बुरा है और कदाचित् यह भा कोई करे तो ऐसा कौन होगा जा अपने हाथ में आया हुआ राज्य दूसरोंको देकर आप स्वयं पराश्रित हो जोवन व्यतीत करेगा ? संसार कनक और कामनी कोई भी किसीको खुशीर नहीं सौंप देता । और यदि ऐसा भा हो तो मेरा पराक्रमः किस तरह प्रगट होगा ? पयार्थ में अपने बाहुबलिये प्राप्त किया हुआ हा राज्य सुखदायक होता है। दूसरे जहांतक अपनी शक्तिसे काम नहीं लिया अर्थात् अपने बलकी परीक्षा कर उसका निश्चय नहीं कर लिया वहतिक राज्य किस आधार पर चल सकता है ? www तीसरे शक्तिको काममें न लानेसे कायरता बढ़ जाती है। पान सई घोड़ा अड़े, विद्या बिसर जाय । बाटो जले अंगारपर किस कारण यह थाय ? उत्तर फेस नहीं । तात्पर्य विद्या अभ्यासकारिणी होती है। इसलिए पुरुषको सदैव सावधान हो रहना उचित है। घर में आग लगनंपर कुबा दाना वृथा है । ऐसे ही शत्रुके आ जानेपर शक्तिको परीक्षा करना व्यर्थ है । इसलिए है प्रियतमें ! मैं विदेश में जाकर निज बाहुबल से राज्यादि वेणव प्राप्त करूंगा। तुम आनन्दसे अपनी सासुकी सदा माताक समान करना और नित्य प्रति श्री जिनदेवका
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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