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उज्जोंनोसे 'श्रीपालका गमन ।
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इसलिये हे प्रिये ! अब मुझे यहां एकर क्षण एक वर्ष बराबर बीत रहा है । बस, मुझे यही दुःख है । यह सुनकर मैनासुन्दरीने कहा-हे नाथ ! यह बिल्कुल सत्य है। क्योंकि कहा है-- भाई रहे बहिनके तीर, विन आयुध रण चढ़े जो धीर । "धन धिना दान देन जो कहे, अरु जो जाय सासरे रहे ।। हंस बसे पोखरो जाय, केहरि बसे नगर में आय । -सनो तने मन विकलप रहे, रण से सुभट भागवे कहै । बोले काग आमकी डाल, मान सरोबर बगुला बाल । कुजर ३६ सिंह का हि. वियों को हंसी कराहि ।। मूरख बांचे महापुराण, कुल भामिन मह खोटी बान । इतने जन जग निन्दा ल हैं, ऐसे बड़े सयाने काहें ।।
इसलिये आपका विचार अति उत्तम है। प्रत्येक मनुष्यको अपने कुल, देश, जाति, धर्म व पितादि गुरुजनोंके पवित्र नामको सर्वोपरि प्रसिद्ध करना चाहिये, क्योंकि पुत्र ही कुलका दीरक कहा जाता है। जिन पुत्रोंने अपने जाति, कुल, धर्म, देश व पितादि गुरुजनोंके नामका लोप कर दिया यथार्थ में वे पुत्र उस कलके कलंक हैं, इसलिये हे स्वामो ! यहांसे चतुरंग सैन्य साय लेकर आप अपने देशको चलिये और चिता मेटकर सानन्द स्वराज्य भोगिये ।
अहा ! धन्य है मनाशुन्दरोको कि जिसने पति के सद्विचारमें अपने विचार मिला दिए ! यथार्थमें वे ही स्त्रियां सराहनीय है जा पतिकी अनुगामिनी हो । अन्यथा जो स्त्रियां स्वामीकी आज्ञाके प्रतिकूल हैं वे केबल बेड़ीकी सरहसे दुःखरूप भयानका बन्धन हैं । कहा है