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________________ श्रीपाल चरित्र | उज्जैनीसे श्रीपालका गमन श्रीपालको प्रिया सहित उज्जैनी में रहते हुए बहुत दिन हो गये। क्योंकि आनन्द में समय जाते मालूम नहीं होता था । क दिन दोनों रात्रिको सुखनींद ले रहे थे कि श्रीपालकी नींद अचानक खुल गई. और उनको एक बड़ी भारी चिताने घेर लिया। वे पडे करवट बदलने लगे और दोघं उस्वास सेने लगे 1 भला ऐसी अवस्था जब पतिकी हो गई, तब क्या स्त्रीको निद्रा आ सकती थी ? नहीं कदापि नहीं । एक अंगकी पीडा दूसरे अंगको अवश्य ही होती है । १६ ] वह पतिपरायणा सती तुरन्त ही जागो और पतिके पैर पकड़कर मसलने तथा पूछने लगी- हे नाय! चिंताका कारण क्या है, सो कृपाकर कहीं। क्या राजाने कुछ कटुवचन कहा है ? या स्वदेशको याद आ गई है ? या किसीने आपके चित्तको चुरा लिया है ? अथवा ऐसा हो कोई और कारण है ? हे प्राणधार ! आपको चिन्तित देख मुझे अत्यन्त चिन्ता हो रही है । तव श्रीपालने बहुत संकोच करते हुए कहा-प्रिये ! और तो कोई चिंता नहीं है, केवल यही बिता है कि यहां रहने सब लोग मुझे राज-जंवाई कहते है और मेरे पिताका नाम कोई भी नहीं लेता है। इसलिये वे पुत्र जिनसे विनाकुखव नाम लोप हो जाय, यथार्थ में पुत्र कहलाने के योग्य नहीं है। इस बालक दु:ख मेरे हृदय में उत्पन्न हुआ है । क्योंक कहा है सुना और सूतके विपे अस्तर इतना हो । वह परवंश बहावती, वह निज बंश हि साय ॥ जो सुत तज निज स्वजनपुर, रहे स्वसुर गृह जाय । •सो कुपूत जग जानिये, अति निर्लज्ज कहाय ॥
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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