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धोपालको माताका श्रीपाल से मिलना। [.
...-..--- लगा लिया। परस्पर कुशल पूछने के बाद राजा पहपालने अपने अविचारितरम्य कृत्यकी निंदा की और पश्चात्तापा करने लगा। तब उस दम्पतिने राजाको विनयपूर्वक समझाकर धैर्य बन्धाया।
रामाने पुत्रोमे उसकी पूर्व व्यथा और उसके दुर होनेका वृत्तांत पूछा । तव पुत्रीने माद्योपांत कह सुनाया । यद्यपि इसले राजाको बहुत कुछ शांति मिली, परन्तु मनको शल्यः निःशेष न हुई । ठीक है-कष्टसाध्य वस्तुके सहज सिद्ध हो बानेसे एकदम शंकाका परिहार नहीं हो जाता, जबतक कि ठोकर साक्षी न मिले ! इसलिये राजा अपनी शंका निर्मूल करने के हेतु श्रीगुरुके पास गये, और विनय सहित नमस्कार कर पूछने लगे
हे धर्मावतार दयालु प्रभु ! श्रीपालके कोड़ हो जानेका वृत्तांत कृपाकर कहो । तव श्रीगुरुने सब वृत्तांत आद्योपांत अवधिज्ञानके बलसे सुना दिया । सुनते ही राजाको शल्य नि:शेष हो गई। इस प्रकार राजा पहुपाल अपनो पुत्री और जंवाई सहित गुरुको नमस्कार कर निज स्थानको गया, और दोनोंको स्नान कराकर अमूल्य वस्त्राभूषण पहिराये, तथा अनेक प्रकारसे पुत्री और जंवाईकी प्रशंसा व सुश्रुषा की । इस तरह वे परस्पर प्रेमपूर्वक अपना समय आनंदसे : बिताने लगे। हे सर्शज्ञ बीतराग दयालु प्रभु ! जैसे दिन बीपाल व मैनासुन्दरीके फिर ऐसे ही सबके फिरें ।