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दूसरा भाग
"था । सात्यकि मुनिको मालूम होने पर उन्होंने उसे
समझाया और ऐसा करनेसे रोका । कद्रने उनकी बात पर 'ध्यान नहीं दिया और लोगोंको अनेक कष्ट देने लगा। तब
सात्यकिने कहा-" तेरे इस पापका फल बुरा होगा और तू 'खियों द्वारा तप-भ्रष्ट होकर मृत्युका ग्रास बनेगा। अतएव
अभीसे सम्हल जा, जिससे कुगतियोंका दुःख न भोगना पड़े।" रूद्र पर इस धमकीका भी कोई असर न हुआ और उसने अपती दृष्टता जारी रखी क्योंकि पापियोंके हृदय में सदुपदेश नहीं ठहरता । । एक दिन रुद्र मुनि कैलाश पर्वत पर गया और वहां आतापन योग द्वारा तप करने लगा। इसके बीच एक और कथा है, जिसका इसीसे सम्बन्ध है। विजयार्द्ध पर्वतकी दक्षिण श्रेणी में मेघनिबद्ध, मेघनिचय और मेनिनाद नामक तीन सुन्दर शहर थे । वहांके राजा कनकरथके उनकी रानी मनोहरसे देवदारु और विद्युजिह्व नामक दो पुत्र हुए। ये दोनों सच्चरित्र और विद्वान थे । योग्य समझ कनकरय अपने बड़े पुत्र देवदारुको राज्य भार सौंप आप गणधर मुनिराजके पास दीक्षा लेकर योगी बन गये और सबको कल्याण मार्ग बतलाना ही अब उनका लक्ष्य हो गया ।
दोनों भाइयों में बहुत दिनों तक तो पटी । पर बादमें किसी कारणसे फूट हो गयी। फलस्वरूप छोटे भाईने राज्यके लोभमें पड़कर बडेके विरुद्ध षड्यन्त्र रच उसे राज्यसे निकाल दिया । देवदारुको अपने मानभङ्गका बड़ा दुःख हुआ। वहांसे आकर वह कैलाश पर्वत पर रहने लगा। देवदारुके आठ सुन्दर कन्याएँ थीं । एक दिन सब बहने तालाब में न करने को आई । अपने अपने कपड़े उतार ये नहानेको जलमें