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बाराधना-कथा-कोष
'महारानी तक पहुँच गयो । उन्होंने उसका सौत्र स्वमाव देखकर नाम भी रुद्र रख दिया। जो वृक्ष जबसे खराब होता हैं उनके फलोंमें मिठापन कहांसे आ सकता हैं ? एक दिन रुद्रसे और कोई अपराध बन पड़ा, जिसे सुन चेलिनोने कोषके आवेशमें यहां तक कह डाला कि किसने इस दुष्टको जना और किसे यह कष्ट देता है। जिसे यह अपनी माता समझता था, उसके मुखसे ऐसी बात सुन रुद्र गहरे विचारमें पड़ गया। उसने सोचा कि इसमें कोई कारण अवश्य हैं। णिकके पास जाकर उसने पूछा-"पिताजी ! सच बताई ये कि मेरे पिता कौन हैं और कहां है ? पहले तो श्रेणिकने आनाकानी की, पर जबरुद्र बहुत पीछे पड़ा, तो लाचार
हो उन्हें सब बातें सच्ची बता देनी पड़ी। रुद्रको इससे बड़ा · वैराग्य हुआ और वह तभी अपने पिताके पास जा कर मुनि हो गया ।
एक दिन रुद्र ग्यारह अंग और दश पूर्वका ऊंचे स्वरसे पाठ कर रहा था। उस समय श्रुतज्ञानके माहात्म्यसे पांच सौ बड़ी विद्याएँ और सात सौ छोटी विद्याएँ सिद्ध होकर आई। उन्होंने रुद्रसे अपनेको स्वीकार करने को प्रार्थना की। रुद्रने लालचवश उन्हें स्वीकार तो कर लिया, पर लोग आगे होने वाले सुख और कल्याणके नाशका कारण होता है, इसका उसने विचार न किया । ___ उस समय सात्यकि मुनि गोकर्ण पर्वतको ऊँची चोटीपर ध्यान किया करते थे । उनकी वन्दनाको अनेक धर्मात्मा पुरुष आया करते थे। जबसे रुद्रको विद्याएँ सिद्ध हुई, तबसे वह मुनि वन्दनाके लिये आनेवाले धर्मात्मा पुरुषों को अपने विद्याबलसे सिंह, व्याघ्र, गेंडा, चौता आदि हिंसक और भयङ्कर पशुओं द्वारा डसकर पर्वत पर जाने न देता