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________________ दूसरा भाग [६१. और भाभूषण लामे चली गई। लौटमेपर उसमे देखा कि यहां कोई नहीं है। अपनी बहनकी कुटिलतासे ज्येष्ठाको बहुत दुःख हुआ। इस दु:ख के मारे यशस्वती मायिकाके पास गई और वह दीक्षित हो गई । ज्येष्ठाकी सगाई सत्यन्धरके पुत्र सात्यकिसे हो चुकी थी। जब सायाकने उसके दीक्षा लेने की बात मुन्नी, जो वादी समाधि मुनिसे दीक्षा लेकर मुनि हो गया। ___एक दिन यशस्वती, ज्येष्ठा आदि आयिकाएं श्री वर्द्धमान भगवानकी वन्दना करने चलीं। बनमें पहुँचते ही खूब जोरसे पानी बरसने लगा, जिससे आयिका संघको बड़ा कष्ट हुआ, उनका संघ तितर-बितर हो गया। ज्येष्ठा कालगुहा नामकी गुफामें पहुंची और उसे एकांत समझ शरीरके भीगे बस्त्रोंको उतार उन्हें निचोड़ने लगी । सायकि मुनि' भी इसी गुफामें ध्यान कर रहे थे। उन्होंने ज्येष्ठा आर्यिकाका खुला शरीर देख लिया । देखते ही कामवश हो, उन्होंने अपने शोलरूपी मौलिक रत्नको मार्यिकाके शरीररूपी अग्निमें झोंक दिया । कामसे अन्धा बना हुआ मनुष्य क्या नहीं कर सकता ? ___ आयिका यशस्वतो ज्येष्ठाकी चेष्टा यादिसे उसकी दशा जान गई । धर्म अपवादके भयसे वह ज्येष्ठाको चेलिनीके पास रख आई, चेलिनीसे उसे गुप्त रीतिसे अपने यहां रख लिया। नौ महीने बाद ज्येष्ठाको पुत्र हुमा, जिसे अंगिकने 'चेलिनीको पुत्र हुआ है', इस रूपमें प्रगट किया । ज्येष्ठा उसे वहीं छोड़, स्वयं आयिका संघमें चली आई और प्रायश्चित लेकर तपस्विनी हो गयी। उसका लड़का थेणिकके घर पलने लगा । बचपनसे सत अच्छी न रहने के कारण उसके स्वभावमें कठोरता आ गई । वह अपने साथ खेलनेवाले लड़कोंको रुद्रताके साथ मारने-पीटने लगा, जिसकी शिकायत
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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