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________________ दूसरा भास मार्ग पर निशार विश और बाराग्रीव मुनिराजको नमस्कार कर चारुदत्तसे बोले--"चलिये, हम आपको आपकी __ जन्मभूमि चम्पापुर में पहुँचा आवे ।" चारुदत्त कृतज्ञता व्यक्त • करते हुए जानेको सहमत हो गया। उन्होंने चारुदत्तको माल असवाव सहित बहुत जल्द विमान द्वारा चम्पापुरी पहुंचा दिया इसके बाद वे उसे नमस्कार कर अपने स्थानको लौट गये। पुग्यबलसे संसार में सब कुछ हो सकता है। अतएव पुण्य प्राप्ति के लिये जिन भगवानके आदेशानुसार दान-पूजा-पूजा शीलरूप चार पवित्र धर्माचरणोका सदा पालन करते रहना चाहिये। अचानक अपने प्रिय पुत्रके आ जानेसे चारुदत्तको मालाको बड़ी खुशी हुई। उन्होंने बार-बार उसे छातीसे लगाकर अपने हृदयको ठण्डा किया। मित्रवतीके भी आनंदका ठिकाना न रहा वह आज अपने प्रितमसे मिलकर जिस सुखका अनुभव कर रही थी, उसकी समानतामें स्वर्गका दिव्य सुख भी तुच्छ है । बातही बातमें चारुदत्तके आनेका समाचार सारे नगरमें फैल गया, जिससे सबको आनन्द हुआ। चारुदत्त किसी समय बड़ा धनी था। अपने कुकर्मोंसे वह राहका भिखारी बन गया । जब उसे अपनी दशाका ज्ञान हुआ तो फिर पुरुषार्थी बनकर उसने कठिनाइयोंका सामना किया । कई बार असफल होनेपर भी वह निराशा नहीं हुआ । अपने उद्योगसे उसके भाग्यका सितारा फिर चमक उठा और पूर्ण तेज प्रकाश करने लगा। कई वर्षोंतक खूब सुख भोगकर अपनी जगह अपने 'सुन्दर' नामके पुत्रको नियुक्त कर वह उदासीन हो गया। दीक्षा ले उसने सप आरम्भ किया और अन्त में सन्यास सहित मरकर स्वर्ग लाभ किया । स्वर्गमें वह नाना प्रकारके भोगोंको भोगता
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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