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________________ ५२ ] आगधना-केयो कोष सन्यासीके साथ चारुदत्त एक पर्वतके पास पहुंचा । रस लानेकी सब बातें समझाकर सन्यासीने चारुदत्तके हाथमें एक तुम्बी दी । सीके पर बैठा कर उसे कुएं में उतार दिया । चारुदत्त तुम्बी रस भर रह था कि इतने में एक मनुष्य उसे ऐसा करनेसे रोका। चारुदत्त पहले तो डरा, पर जब उस मनुष्यने कहा कि डरों मत; तब वह कुछ निर्भय होकर बोला--"तुम कौन हो और इस कुए में कैसे आये?" कुएमें बैठा हुआ मनुष्य बोला-'मैं उज्जयिनीका रहनेवाला हूं और मेरा नाम धनदत्त है । सिंहलद्वीपसे लौटते समय तूफानमें पड़कर मेरा जहाज फट गया, जिससे बहुत धन-जनकी हानि हई ! शुभ कर्म से एक पटियां मेरे हाथ लग गया, जिसके सहारे मैं बच गया । समुद्रसे निकल कर मैं अपने शहरको ओर जा रहा था कि रास्तेमैं मुझे यही सन्यासी मिला । यह दुष्ट मुझे धोखा देकर यहां लाया । कुंएमें से रस भर कर देने पर भी इस पापीने पहले मेरे हाथसे तूम्बी ले लो भौर फीर रसी काट कर भाग गया । मैं आ कर कुएमें गिरा । भाग्यसे चोट तो अधिक न लगी, पर दो तीन दिन इसमें पडे रहनेसे अब मेरे प्राण घुट रहें है ।" उसकी हालत सुनकर चारुदत्तको बड़ी दया आई, पर वह स्वयं भी उसो परिस्थितिमें मा फंसा था, इसलिए उसकी कुछ सहायता न कर सका । चारुदत्तनै उससे पूछा-" तो मैं इसे रस भर कर न दू?" धनदत्तने कहा--" ऐसा मत कहो, रस भरकर दे ही दो, सभ्यथा यह ऊपरसे पत्थर वगरेह मार कर बड़ा कष्ट पहुंचावेगा ।" तब चारुदत्तने एक बार तुम्बी रससे भरकर सीके में रख दी । सन्यासीने उसे निकाल लिया । चारुदत्तको निकालने के लिये उसने फिर सीका नीचे डाला। अब की बार स्वयं सोंके पर न बैठकर चारुदत्तने कुछ
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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