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________________ दुस माग अचानक किसी अनिष्टकर जलमग्न शिलासे टकरा कर जहाज ' चूर-चूर हो गया । चारुदत्तका सब माल-असवाब समुद्रके विशाल उदरमें विलीन हो गया । वह फिर पहिले सरीखा दरिद्र हो गया, पर दुःख उठाते-उठाते उसकी सहन शक्ति अत्याधिक हो गयी थी । एकके बाद एक आनेवाले दुःखोंने उसे निराशाके गहरे गढ़ेसे निकाल कर पूर्ण आशावादी और फर्तव्यशील बना दिया था । इसलिए इस बार भी उसे अपनी 'हानिका दुःख विशेष नहीं हुआ, वह फिर धन कमाने के लिये 'विदेश चल पडा । इस बार फिर उसने बहुत धन कमाया । घर लौटते समय फिर उसको पहिले जैसी दशा हुई । इतने में ही उसके बुरे कर्मोका अन्त न हुआ ऐसी भयङ्कर घटनाओंका उसे सात बार सामना करना पड़ा । कष्टपर कष्ट आनेपर भी वह अपने कर्तव्यसे विचलित नहीं हुआ। आखिरी बार जहाजके फट जानेसे वह स्वयं भी समुद्र में जा गिरा. पर भाग्यसे एक तख्तेके सहारे वह किनारे लग गया। यहांसे चलकर यह राजगृह पहुँचा, जहां विष्णुमित्र नामक सन्यासीसे उसकी भेंट हुई । सन्यासीने उससे अपना काम निकलता देख, पहले बडी सज्जनताका बर्ताव किया। चारुदत्तने भी उसे भला आदमी समझ अपनी हालत कह सुनाई 1 विष्णुमित्र भी होंमें हां • मिलाते हुए बोला--"अच्छा हुआ जो तुमने अपना सब हाल कह सुनाया । धनके लिए अब तुम्हें इतना कष्ट न उठाना पडेगा । आओ, मेरे साथ चलो । यहांसे कुछ दूर आगे एक जंगल हैं वहां पर्वतकी तलहटीमें रसायनसे भरा एक कुँआ है। उस रसायनसे सोना बनाया जाता हैं । उससे थोड़ासा रस निकाल कर तुम ले आओ, तो तुम्हारी सारी दरिद्रता दूर हो जायगी । " चारुदत्त सन्यासीके पोछे-पीछे चला । दुर्जनों द्वारा धनके लोभी इसी प्रकार ठगे जाते है।
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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