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बाराषना-कथा-कोष
नही । वसन्तसेनाकी मांने युक्तिसे चाश्वत्तको घरसे निकाल बाहर किया। वेश्याओंका प्रेम धनके साथ रहता है, अनुष्य के साथ नहीं । अतएव जहां धन नहीं, वहां वेश्याका प्रेम नहीं | अब चारुदत्तको जान पड़ा कि इस प्रकार विषयभोगमें आसक्त रहनेका कैसा भयङ्कर दुष्परिणाम होता है । वह अब वहां एक पलके लिये भी न ठहरा और अपनी स्त्रीके बने आभुषण साथ ले पुरुषार्थ के लिये वदेश निकल पड़ा। उस अवस्थामें अपना काला मुह वह अपनी मांको दिखला ही कैसे सकता था ?
वहांसे चलकर चारुदत्त उलूख देशके उशिरावर्त शहरमें पहुंचा । चम्पापुरसे चलते समय उसका मामा भी साथ हो गया था। उशिरावर्त में कपास खरीद कर ये तामलिप्तापुरीकी ओर रवाना हुये । रास्तेमें इन्होंने विधामके लिये एक वनमें डेरा डाल दिया । इतने में जोरसे आँधी आयी, और परस्परको सगड़से बांसोंके धनमें आग लग गयी । मागकी चिनगारियां उड़कर कपासपर जा पड़ी । देखते-देखते सब कपास भस्मीभूत हो गया। इस हानिसे चारुदत्त बहुत दु:खी हुआ। वहांसे अपने मामासे सलाह कर वह समुद्र दत्त सेठके जहाज वारा पवन द्वीपमें पहुँचा, यहां उसके भाग्यका सितारा चमका
और उसने खूब धन कमाया । अब उसे जननीके दर्शनके लिये स्वदेश लौट जानेकी इच्छा हुई। उसने चलनेकी तैयारी कर जहाजमें अपना माल असवाव सब लाद दिया ।
जहाज अनुकूल समय देखकर रवाना हुआ । जैसे-जैसे वह अपनी जन्मभूमिकी ओर बढ़ता जाता था, वैसे-वैसे उसकी प्रसन्नता अधिक होती जाती थी। पर अपना चाहा तो कुछ होता नहीं हैं, जब तक कि देवको वह मंजूर न हो। यही कारण था कि चारुदत्तकी इच्छा पूरी न हो पायी, क्योंकि
वनमें
हो गया। पापड़ी, गयो । या. और
पहांसे