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श्रीपालका कुष्ट रोग दर होना। [४७ कर्म असाता अंत है, उदै जु साता आय । तब सुध बुध सब ऊपझे, आप हि बने उपाय ||
पश्चात् वे दोनों (दम्पति) उठे और बड़े उत्साह से . स्नानकर शुद्ध वराह, और प्रशुभ मष्ट द्रव्य लेकर श्रा जिन चैत्यालयको वन्दनार्थ गये । सो वहां पहुंचकर प्रथम ही
ॐ जय ३ नि.सहि निःसहि निःसाहि' कहकर मन्दिरके अन्दर प्रवेश किया । और फिर तीन प्रदक्षिणा देकर श्री जिनेन्द्रको शांत मुद्राको देखकर परम शांतभावको प्राप्त हो स्तुति करने लगेशांति छबी मन भाई स्वामी तेरी, शांत छबी मन भाई । टेक दर्शन मिथ्या तिमिर नाश हो, स्वपर स्वरुप लखाई । परसत परम शांतिता उपजत, अरचत मोह नशाई। स्वामी दोष अठारह रहित जिनेश्वर, सब जीवन सुखदाई । आप तिरे पर तारण कारण, मोक्ष राह बतलाई । स्वामी।। तुम गुणमाल चितारत ही चित, कठिन कर्म कट जाई । *दीप'जगत जन भव तट पायो,शरण तुम्हारे आई।स्वामी०।
इस प्रकार स्तुति करनेके पश्चात् यहां पर विराजमान श्री निग्रन्थ गुरुके चरणकमलोंमें नमस्कार कर दम्पत्ति अपने असाता वेदनोयके नाश होने के निमित्त विनयपूर्वक इस प्रकार पूछने लगे
हे स्वामी ! आपके निकट यात्रु और मित्र मब रामान हैं । मिथ्यात्वरूपी अंधकारसे अंध हुए जीवोंको ज्ञानार्जन द्वारा सनेत्र करनेको आप ही समर्थ हैं, हम लोग तो कर्मके मेरे हुए चतुर्गतिका संसारमें भटक रहे हैं, और उन्हीं कर्मों के