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श्रीपाल चरित्र
श्री नन्दीश्वर व्रत महास्य
मङ्गलाचरण वीतराम सर्वज्ञ जिन, हित उपदेश क देव । शिवमग दर्शक आप्त नित, नमू कहें पद सेव ॥शा विषयारम्भ परिग्रह बिन, गुरु नमों निर्गन्ध । कायर जनको जिन कियो ,सरल मोक्षको पंथ ।।२।। ॐकार वाणी नमू', द्वादशांग उर धार । श्री श्रीपाल चरित्रकी, करू दनिका सार ।।३।।
पञ्चपरमेष्ठी-स्तुति कर्म घातिया नाशकर, छहो चतुरुक अनन्त । नमं सकल परमात्मा, बोतराग अर्हन्त ||४|| नित्य निरंजन सिद्ध शिव, मूर्ति रहित साकार । अमल निकल परमात्मा, नमू' त्रियोग सम्हार ||५॥ दीक्षा शिक्षा देत जो, सकल संघके ईश । ऐसे सूय मुनीन्द्रको, वन्दू कर धर शीश ॥६॥ द्वादशांग श्रुत निपुण जे, पढ़ें पदावे धीर । ऐसे श्री उवझाय मुनि, वेग हरो भवपीर ।। विषयारम्भ निवारके, मोह कषाय विडार । तजे ग्रंथ चौबीस जिन, साधु नमू सुखका ॥ पंच परम पद मैं नमू, आठों अंग नेवाय । जा प्रसाद मंगल लहूं, कोटि विघ्न क्षय जाय ।।९।।