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* प्रस्तावना * आगरा निवासी श्रीमान् परिमल्लषी नामक विद्वान जन्न माविने 'श्रीपालचरित्र' अर्थात नंदीश्वर व्रत महात्म्य ग्रन्थः विक्रम सं. १६५१में हिन्दी पद्यों में रचा था, उसकी हस्तालखित प्रति लाहोरमें थो, उसे शुद्ध करके बाबू ज्ञानचन्दजी जैन लाहोरने सन् १९०४ में छपवाक र प्रगट किया था, किन्तु वह समाप्त हो गया था और पद्य में होने से सर्वोपयोगी भी नहीं या । इसलिए हमने सभी प्रांसवासी जनोंके हितार्थ इसे राष्ट्रभाषा हिन्दी में सं. १९७० में श्री धर्मरत्न पं. दोपचंदजी वी अधिष्ठाता ऋपब्रहा मत्रिम मथुरासे अनुवाद कराकर प्रकट पिया । वह भूल: पन्ध्र असा हा एक प्रफट किया हैं। १५) रु. है।
पूज्य वर्गीजी जैन समाज के आदर्श त्यागी एवं विद्वान थे। आपने अनेक अन्याका समादन व अनुवाद किया था । और इस भोपालचरित्रका वाद पूर्ण संशोधन परिवद्धं न आदि भो सलाधारणके हितार्थ मापने ओनसरी कबसे ही कर दिया था।
यह श्रीपालचरित्र अर्थात् अष्टाह्निका व्रत महात्म्य जैन समाजमें कितना प्रिय है, यह इसीसे प्रगट है कि इसकी आरबी आवृति प्रकट की थी वह भी पुरी हो जाने से यह नवमी बार प्रमटकर रहें हैं इस आवृत्तिने यथोचित संशोधन व परिवर्द्धन हुआ है और प्रासंगिक चित्र भी दिए गये है। इन चित्रोंसे इस ग्रंथकी शोभा अधिक बढ़ गई है। आशा है
इस नंदीश्वरवत महात्म्यको समझगी और उसे पालन करके पुण्योपार्जन करेगी। सूरत
शैलेश डाह्याभाई कापड़िया.. वीर सं. २५२१ फागण
घरत-३. सुदी १५ ता. १७-३-९५ ,