________________
भीगाला जादोग दूर होना। [४५ संसारमें कौन उन्हें अवलम्बन देनेवाला है ? जैसे डालीसे चूका बन्दर और वृक्षसे टूटा फल इनको कोइ सहायक नहीं होता में ही पतिसे विमुख स्त्रियों को भी कोई सहायक नहीं होता है।
पुराणों में सीता, द्रोपदा, सुलोचना आदि सतियोंकी कथाएं: प्रसिद्ध हैं कि जिन्होंने और सुखों पर धुल डालकर पति के साथ जंगल, पहाडोंमें शेर, बाग श्याल प्रभति हिंसक पशुओंका सामना करते हुए, कंकर पत्थरोंकी ठोकर खाकर, कांटोंपर चलना स्वीकार किया था परन्तु पतिका साथ छोडना किसी प्रकार स्वीकार नहीं किया ।
इसलिये हे प्रियतम ! मैं एक क्षणभर भी आपको ऐसी अस्वस्थ अवस्थामें छोडकर अलग नहीं रह सकती। मैं आपको अपना भार बनाकर अपने आपको बड़ी भाग्यवती समझती" हूँ । संसार में वे ही स्त्रियां धन्य है कि जिन्होंने कुछ भी पति--. सेवा की है।
प्राणपति ! मेरी दृष्टि में तो आपसे अधिक रूपवान, गुणवान्, धर्यवान, बलवान मनुष्य कोई भी संसारमें नहीं दीखता । मेरे नेत्र तो आपको देखकर हो प्रफुल्लि होते हैं । मोरा हृदय तभीतक पवित्र है, जबतक आपके पद प्रक्षालन करती हूँ। तभोतक धन्य हूँ जबतक आपको मेवा करतो हैं... जो स्त्रियां शील रहित हैं, पतिको निन्दा करने वाली हैं, उनको धिक्कार है । शीलवत ही जगत में प्रधान रत्न है।
पीलवान् नर नारियोंके देव भी किंकर होते हैं । और गृहस्थ स्त्रियोंकी शीलवत स्वपतिकी अनुचरो होकर रहना ही है । इसलिये ऐसे पवित्र शीलधर्मको में कदापि नहीं छोड़ सकती । शील ही मेरा स्प है, शील ही आभूषण और शीला :