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उदय है, तब देख सकता है या और
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भोपाल चरित्र । - कोसी, सी कईसे भा कोमल, महा सुगन्धित शरीर और • कांतिमान तेजस्वो तुम्हारी छबो है, और कहां में अत्यन्त · कुरुष, कष्ट व्याधिसे पोनिल महा दुर्गन्धित शोकादारा हूं।
इसलिये हे प्राणवल्लभे ! जब तक मेरे इस अशुभ कर्मका उदय है, तबतक तुप दूर रहो । यह राध रुधिर पांछते हुए तुमको मैं नहीं देख सकता हूं। मुझे तुमको इस प्रकार सेवा करते देखकर बहुत करूणा लग्ना और खेद उत्पन्न होता है. कि तुन जैसी सर्वगुगल स्त्रोको मेरे जैसा रोगो र तार मिला। इसलिए मेरे जब तक असाता कर्मका उच्य है , तर तक तुम अलग रहकर हो सुखसे काल व्यतीत करो । यद्यपि श्रीपाल जो के द्वारा ये वचन मैनासुन्दरोके लिए हित और करुण बुद्धिसे ही कहे गये थे, परन्तु उस समय वे उसे तीक्षण तीरके समान प्रतीत हुए क्योंकि• 'पति निंदा अरु आप बढ़ाई, सहन सके कुलवती लुगाई।' __ यह मंद स्वरसे बोलो-नाथ ! मुझे आपके ये शब्द सुहावने नहीं लगे । क्श दापोसे कोई अपरान बन गया है या सेवामें त्रुटो पाई गई है जो ऐसे तिरस्कार युत वचन कहे गये हैं। प्राणनाथ ! क्या स्वप्न में भी मैं आपको छोड़ सकती हूँ ? कस छाया शरीरसे, चांदनी चन्द्रमासे, धून सूर्यमे, उष्णता अग्निसे, और शोतलता हिमसे कभो पृथक् हो सकता है ? नहीं कदापि नहीं चाहे अवल सुमेरु चल जावे, चाहे मूर्य परिचमसे उदय होकर पूर्वमें अस्त होवे और चाहे जलमें अग्निात् उष्णता हो जावे, तो भा शोलवान् स्त्रियां पति सेवाने विमुख नहीं हो सकती ।।
स्त्रियों को संसारमें एक मात्र सुखका आधार उनका पति ही होता है, और यदि पति ही तिरस्कार करे तो फिर