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________________ प्रोपाल चरित्र । - - देखिये, जिस महान पुरुषोंको आप लोग अनिष्ट बुद्धिसे देखते हैं, वहीं पुरुष मझे इष्ट प्रतीत होता है, इसलिये आप लोग. इस नर्चाका यहां अन्त कर दीजिये और आगामो अपना समप इस प्रकारको चिन्तामें न बिताईये मेरो सबो यहाँ प्रार्थना है इसमें मेरे विसाजीकः दोष Eि: : ही नह. है, इसलिये कदापि आप लोग उनको कुछ भी कहकर व्यर्थ: क्लेशित न कीजिये। पुत्राके ऐसे आगमानुकून गम्भीर बचन सुनकर सब ओर से धन्य को ध्वनि होने लगा, सबको सन्तोष हुआ। और सब लोग अपने २ स्थानोंको पधारे । राजाने भो कन्याको बहुत . कुछ दाम दहेज आदि देकर विदा किया । यद्यपि विस्तारके : भय से सब दहेजका वर्णन नहीं हो सकता है. तो भी थोडासों कहते हैं। राजो पहपाल ने विदाके समय सब स्वजन, परजन द. पुरजनोंका इच्छित भोजन, और अपने जंचाई राजा श्रोपालको छत्र, चमर, मुकुट, आदि अमूल्य रत्नोंसे सुसज्जित किया तथा पांची कपडे पहिराये । पुत्रीको सम्पूर्ण प्रकारके बहुमूल्य वस्त्र आभपण दिये और साथ में सेवा करने के लिए हजारों दास दासियां, हाथी, घोडे, रथ, प्यादे पालकी, गाय, भैंस और ग्राम, पुर, पट्टन आवि दिये, तथा क्षमा मांगकर उनको विदा किया। कुछ समय तक नगर में यही चर्चा रही । फिर ज्यों ज्यों दिन बोतते गये त्यों त्यों लोग इस बातको भूलने लगे । सो ठीक ही है "कोइ किसीके दु:खको, नाहीं सकत बटाय । जाको धी भृमी गिरी, सी हो लूखो खाय ।।"
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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