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________________ मसमुन्दरीनाभीपाले कम . .. .. मंत्रीगण जो अपने सब उपाय करके निष्फल हो चुके थे 'सो बिना कुछ कहे ही आज्ञानुसार वहां पहुचे, जहाँ कुष्टीराज श्रीपालको डेरा दिया गया था, और बढे समारोहसे घर' राजाको ले आये। जो लोग अगवानीको गये थे वे वरको देख देखकर राजाको मन ही मन धिक्कान्ते और उसको हंसी ‘करते थे । राजा पहपालने किसीकी और कुछ भी ध्यान न देकर बड़े आदरमें जंवाईका आगे जाकर स्वागत किया, और उच्चासन देकर बैठाया, तथा उबटन कराकर क्षीर नीर तथा सुगन्धसे भरे हुए कंचन के कलगों से अभिषेक फगया । नाना प्रकार तेल, फुलेल, अगर जा, इत्र आदि शरीरमें मर्दन किए, परन्तु जैसे मैले वर्तन पर कलई नहीं हो सकती, उसी 'प्रकार इन उपचारोंसे श्रीपान के शरीर की दुर्गन्धी कुछ मो -कम न हुई । निदान वरको वस्त्र, आभूषण, और मुकुट, कंकण, जामा इत्यादि सब कुछ पहिराए गये, परन्तु उस समयका यह सब गार ऐसा था, जैसे बन्दरको शृगारना, क्योंकि एक ओर -वस्त्राभूषणोंकी कौनो जगमगाती था तो दूसरी ओर पोप और रूधिरकी धार बह रही थी । इस प्रकार वर घोड़े पर सवार होकर विवाहमाडरमें आया । कामनी घोरी वनरा (फेरे फिरनेके पहिलेका गीत) गाने लगी। जमी समय बहुन भीड़ थी । कारण कि एक तो राजघराने का उत्सव और दूसरे यह 'विचित्र गोरखधंधा । उस समय वहां उस बड़ी मोड में लोगों के मुहसे नाना प्रकार के भाव प्रकट होते थे । किसीके चेहरेसे शोक, किसी केसे विन्ना, किसी केमे भय, किसी केसे ग्लानि, किसीकेसे पाचर्य, किसीकेसे क्रोध और किसीफेसे विरा. गतासो झलकती थी । समो लोग विचारोंमें निमग्न हो रहे भने । और किसने ही लोग केवल कोतकरूपसे ही सम्मिलित
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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